व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में पुत्रदर्शन पर्व के अंतर्गत अध्याय 30 में व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देने का वर्णन हुआ है।[1]

व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना

ब्रह्मर्षे! मुझ मूढ़ नारी ने अपने पुत्र को पहचान लिया तो भी उसकी उपेक्षा कर दी। यह भूल मुझे शोकाग्नि से दग्ध करती रहती है। आप को तो यह बात अच्छी तरह ज्ञात ही है। भगवान! मेरा यह कार्य पाप हो या पुण्य, मैंने इसे आप के सामने प्रकट कर दिया। आप मेरे उस दाहक शोक को दूर कर दें। निष्पाप मुनिश्रेष्ठ! इन महाराज के हृदय जो बात है, वह भी आप को विदित ही है। ये अपने मनोरथ को आज ही प्राप्त करें, ऐसी कृपा कीजिये। कुन्ती के इस प्रकार कहने पर वेदवेत्ताओें में श्रेष्ठ महर्षि व्यास ने कहा- ‘बेटी! तुम ने जो कुछ कहा है, वह सब ठीक है, ऐसी ही होन हार थी। ‘इस में तुम्हारा कोई अपराध नहीं है; क्योंकि उस समय तुम अभी कुमारी बालिका थी। देवता लोग अणिमा आदि ऐश्वर्यों से सम्पन्न होते हैं; अतः दूसरे के शरीरों में प्रविष्ट हो जाते हैं। ‘बहुत-से ऐसे देव समुदाय हैं, जो संकल्प, वचन, दृष्टि, स्पर्श तथा समागम-इन पाँचों प्रकारों से पुत्र उत्पन्न करते हैं। ‘कुन्ती! देव धर्म के द्वारा मनुष्य धर्म दूषित नहीं होता, इस बात को जान लो। अब तुम्हारी मानसिक चिन्ता दूर हो जानी चाहिये। ‘बलवानों का सब कुछ ठीक या लाभदायक है। बलवानों का सारा कार्य पवित्र है। बलवानों का सब कुछ धर्म है और बलवानों के लिये सारी वस्तुएँ अपनी हैं।’

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 30 श्लोक 17-24

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आश्रमवास पर्व

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पुत्रदर्शन पर्व

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