धृतराष्ट्र द्वारा मृत व्यक्तियों के लिए श्राद्ध एवं दान-यज्ञ का अनुष्ठान

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 14वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने राजा धृतराष्ट्र के द्वारा मृत व्यक्तियों के लिए श्राद्ध एवं विशाल दान-यज्ञ का अनुष्ठान करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र द्वारा श्राद्ध एवं दान-यज्ञ अनुष्ठान

वैशम्पायन जी कहते हैं- महाराज जनमेजय! विदुर के ऐसा कहने पर राजा धृतराष्ट्र युधिष्ठिर और अर्जुन के कार्य से बहुत प्रसन्न हुए। तदनन्तर उन्होंने भीष्म जी तथा अपने पुत्रों के श्राद्ध के लिये सुयोग्य एवं श्रेष्ठ ब्रह्मर्षियों तथा सहस्रों सुहृदों को निमन्त्रित किया। निमन्त्रित करके उनके लिये अन्न, पान, सवारी, ओढ़ने के वस्त्र, सुवर्ण, मणि, रत्न, दास दासी, भेड़ बकरे, कम्बल, उत्तम उत्तम रत्न, ग्राम, खेत, धन, आभूषणों से विभूषित हाथी और घोडे़ तथा सुन्दरी कन्याएँ एकत्र कीं। तत्पश्चात् उन नृपश्रेष्ठ ने सम्पूर्ण मृत व्यक्तियों के उद्देश्य से एक एक का नाम लेकर उपर्युक्त वस्तुओं का दान किया। द्रोण, भीष्म, सोमदत्त, बाह्लीक, राजा दुर्योधन तथा अन्य पुत्रों का और जयद्रथ आदि सभी सगे सम्बन्धियों का नामोच्चारण करके उन सबके निमित्त पृथक-पृथक दान किया। वह श्राद्ध यज्ञ युधिष्ठिर की सम्मति के अनुसार बहुत से धन की दक्षिणा से सुशोभित हुआ। उसमें नाना प्रकार के धन और रत्नों की राशियाँ लुटायी गयीं। धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से हिसाब लगाने और लिखने वाले बहुतेरे कार्यकर्ता वहाँ निरन्तर उपस्थित रहकर धृतराष्ट्र से पूछते रहते थे कि बताइये, इन याचकों को क्या दिया जाय? यहाँ सब सामग्री उपस्थित ही है। धृतराष्ट्र ज्यों ही कहते त्यों ही उतना धन उन याचकों को वे कर्मचारी दे देते थे।

बुद्धिमान कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर के आदेश से जहाँ सौ देना था, वहाँ हजार दिया गया और हजार की जगह दस हजार बाँटा गया है। जिस प्रकार मेघ पानी की धारा बहाकर खेती को हरी भरी कर देता है, उसी प्रकार राजा धृतराष्ट्ररूपी मेघ ने धनरूपी वारिधारा की वर्षा करके समस्त ब्राह्मण रूपी खेती को तृप्त एवं हरी भरी कर दिया। महामते! तदनन्तर सभी वर्ण के लोगों को भाँति-भाँति के भोजन और पीने योग्य रस प्रदान करके राजा ने उन सबको संतुष्ट कर दिया। वह दान यज्ञ एक उमड़ते हुए महासागर के समान जान पड़ता था। वस्त्र, धन और रत्न ये ही उसके प्रवाह थे। मृदंगो की ध्वनि उस समुद्र की गर्जना थी। उसका स्वरूप विशाल था। गाय, बैल और घोडे़ उसमें घड़ियालों और भँवरों के समान जान पड़ते थे। नाना प्रकार के रत्नों का वह महान आकर बना हुआ था। दान में दिये जाने वाले गाँव और माफी भूमि - ये ही उस समुद्र के द्वीप थे। मणि और सुवर्णमय जल से वह लबालब भरा था और धृतराष्ट्र रूपी पूर्ण चन्द्रमा को देखकर उसमें ज्वार सा उठ गया था। इस प्रकार उस दान सिन्धु ने सम्पूर्ण जगत को आप्लावित का दिया था। महाराज! इस प्रकार उन्होंने पुत्रों, पौत्रों और पितरों का तथा अपना एवं गान्धारी का भी श्राद्ध किया। जब अनेक प्रकार के दान देते-देते राजा धृतराष्ट्र बहुत थक गये, तब उन्होंने उस दान यज्ञ को बंद किया। कुरुनन्दन! इस प्रकार राजा धृतराष्ट्र ने दान नामक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया। उसमें प्रचुर अन्न, रस एवं असंख्य दक्षिणा का दान हुआ। उस उत्सव में नटों और नर्तकों के नाच गान का भी आयोजन किया गया था। भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार लगातार दस दिनों तक दान देकर अम्बिकानन्दन राजा धृतराष्ट्र पुत्रों और पौत्रों के ऋण से मुक्त हो गये।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-18

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महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

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पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

नारदागमन पर्व

नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

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