श्रीकृष्णांक
पूर्णावतार श्रीकृष्ण
ऊपर किये गये वर्णन के अनुसार जिस क्रम से हमें बाह्य स्थूल पदार्थ का अनुभव प्राप्त होता है, उसके बिलकुल विपरीत क्रम से हमारे मन में अवतीर्ण हुआ भगवान श्रीकृष्ण का मानसिक तेजरुप हमारी दृढ श्रद्धा के बल से सतत संस्कार की आवृति से बाह्य तेज का रुप ग्रहण करता है और फिर प्रगाढ़ से प्रगाढ़तर बनते बनते अन्त में स्थूल (पंचभौतिक) जगत में स्थूलाकार ग्रहण करता है। उस स्थूल रुप के दर्शन को ही श्रीकृष्ण का साक्षात्कार कहते हैं-
शास्त्रीय पद्धति से किसी वस्ततु के मूल स्वरुप की ओर जाने से, कार्य से कारण का, दृश्य स्वरुप से अदृश्य स्वरुप का और स्थूल से स्थूल का पृथककरण (Analysis) अर्थात व्यतिरेक (Ascending) करने में जो-जो अनुभव होते हैं, इसके विपरीत, कारण से कार्य की ओर, अदृश्य स्वरुप से दृश्य स्वरुप की ओर, सूक्ष्म से स्थूल की ओर आने में भी शास्त्रीय पद्धति से एकीकरण (Synthesis) अर्थात अन्वय (Descending) करने में भी वही अनुभव होते हैं। इस प्रकार से साक्षात्कार का जिसे अनुभव प्राप्त करना हो उसे चाहिये कि वह स्थूल मूर्ति की उपासना से लेकर, उसमें (उस स्थूल मूर्ति में) सदा परिपूर्ण रहकर कार्य करने वाले सच्चिदानंदघन भगवान श्रीगोपालकृष्ण स्वरुप के सूक्ष्म तेजोमय दर्शन तक पहुँचाने वाले निष्ठा मार्ग का अनुसरण करे। तदन्तर पूर्ण परमात्मा के स्वरुप का ससाक्षात दर्शन करते समय, इस बात का पूरा निश्चय करने के लिए कि, हम साक्षात परमेश्वर का ही दर्शन कर रहे हैं या नहीं, उस रुप में ही जगत के स्थूल स्वरुप का प्रत्यक्ष अनुभव करके दोनों प्रकार के अनुभव से अपना विश्वास दृढ़ कर लेना चाहिये। भगवान श्रीगोपालकृष्ण ने कृपा करके इस प्रकार के अभ्यास का सुगम मार्ग भी हमें दिखा दिया है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |