श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
तदभूरिभागयमिह जन्म किमप्यरटव्यां इस भूमि पर, वृंदावन में और उसमें भी गोकुल में जन्म होना परम सौभागय का विषय है, क्योंकि यहाँ जन्म लेने से किसी न किसी आपके प्यारे गोकुलवासी की चरणधूलि सिर पर पड़ ही जायेगी। गोकुलवासी धन्य है, समस्त श्रुतियां निरन्तर जिनकी खोज में लगी हुई हैं, वही आप इन व्रजवासियों के जीवन हैं। परन्तु भगवान् ! विषविषमस्तसनापि कृतमातृसुवेशतया पूतना राक्षसी स्तनों में विषम विष लगाकर भी माता का सा सुन्दर वेश धारण कर आयी थी, इसी से वह अपने छोटे भाई (बकासुर) समेत आपके सुन्दर परम धाम को प्राप्त हो गयी। तब फिर इन व्रजवासियों को आप क्या देंगे, जिन्होंने अपना धन जन, जीवन माता-पिता, वन, बगीचे आदि सब आपको अर्पण कर दिये हैं ? इसलिए आपका इनके प्रेमॠण में बंधे रहना ही उचित है। इस प्रसंग को देखकर मेरी बुद्धि विलुप्त सी हो रही है। जगत स्त्रस्टा ब्रह्माजी भगवान की स्तुति, प्रदक्षिणा और उन्हें प्रणामकर तथा भगवान की आज्ञा लेकर अपने लोक को चले गये। एक बार आधी रात के समय रेंड़ के वन में आग लग गयी। आग ने सबको घेर लिया। व्रजवासी भगवान से पुकार मचाने लगे। अनंत शक्तिशाली जगदीश्वर भगवान ने स्वजनों को विकल देखकर तत्काल ही अग्नि को पी लिया। इसी प्रकार एक बार फिर आग लगी, तब पुन: सबने श्रीकृष्ण बलदेव को पुकार कहा- ‘हे कृष्ण ! हे बलराम ! आप महान बलशाली और अपरिमित पराक्रमी हैं, इस दुर्दान्त दावानल से हमें बचाइये। भगवान ने कहा- तुम लोग डरो मत, आंखे मूंद लो। भगवान की आज्ञानुसार जब सबने आंखें बन्द कर लीं, तब योगाधीश्वर श्रीकृष्ण तुरंत अग्नि को पी गये और इस प्रकार श्रीहरि ने अपने जनों को बचा लिया। तथेति मीलिताक्षेषु भगवानग्निमुल्बणम् । श्रीमद्भा.10।19।12
व्रज में प्रतिवर्ष इन्द्र का यज्ञ हुआ करता था, कालरुप भगवान ने इन्द्र का दर्प चूर्ण करने की इच्छा से नन्दजी आदि को समझाकर इन्द्र का यज्ञ बन्द करा दिया और उसके बदले में गोवर्धन पर्वत और गौओं की पूजा करवायी। भगवान की आज्ञानुसार ब्राह्मणों को दान दिया गया, गौओं को हरी घास और बढ़ियां चारा खिलाया गया, तदन्तर सब गोपियां सज धजकर छकड़ों पर सवार हो श्रीकृष्ण के गुणगान करती हुई गिरिराज की प्रदक्षिण करने लगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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