श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
इन सबका कारण यह था कि प्रेमार्णव श्रीकृष्ण ही सब कुछ बने हुए थे। सालभर यों ही बीत गया। श्री बलदेवजी को वज्रवासी स्त्री, पुरुष और गौओं का अपने पर पुत्रों पर इतना स्नेह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने ज्ञाननेत्रों से देखा तो उन्हें दिखलायी दिया कि बछड़े और उनकी रक्षा करने वाले ग्वाल बालक सभी ‘श्रीकृष्ण रुप’ हैं। बलदेवजी के पूछने पर भगवान ने उन्हें सारा भेद बतलाया। बह्माजी ने आकर देखा कि श्रीकृष्ण पूर्व की भाँति उसी प्रकार अपने साथी ग्वाल बालों के साथ खेलते खाते हुए बछड़े चरा रहे थे। उनका बड़ा अचरज हुआ, उन्होंने अपने लोक में जाकर देखा कि बालक और बछड़े ज्यों-के-त्यों अचेत पड़े हैं। फिर इन्हें यह भ्रम हो गया कि इन दोनों में से वास्तव में कौन से बालक और बछड़े असली हैं और कौन से नकली हैं। ब्रह्माजी की बुद्धि चकरा गयी, इतने में उन्हें दिखायी दिया कि समस्त बछड़े और उनके रक्षक बालक श्रीकृष्ण रुप हो रहे हैं।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |