श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
व- श्रीकृष्ण की देह अप्राकृत थी, इसमें सन्देह ही क्या है? अप्राकृत देह का त्याग नहीं हो सकता, परन्तु उसके त्याग का भान होता है; वह भी लोक-दृष्टि में इन्द्रजालवत समझना चाहिये। स्कन्द पुराण में कहा गया है— अर्थात मर्त्यलोक-त्याग करने का का नाम ही भगवान का ʻदेह-त्यागʼ है- वस्तुत: भगवद्देह नित्यानन्दमय होने के कारण कभी त्यक्त नहीं हो सकती। जहाँ देह और देही पृथक होते हैं वहीं देह-त्याग की बात उठ सकती है, देह और देही अभिन्न होने पर त्याग कैसे हो सकता है? सुतरां श्रीकृष्ण ने तो वस्तुत: देह का त्याग ही किया था और न देह का ग्रहण ही किया था। हाँ, वे मायिक या प्राकृत देह ग्रहण कर सकते हैं- करते भी हैं और उसी का त्याग होता है। कारण, वह आगन्तुक होती है। जि- जो लोग श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन करते थे, वे सभी क्या उनके स्वरूप देह के दर्शन पाते थे ? ऐसा प्रतीत तो नहीं होता। क्योंकि ऐसा होता तो उनके र्इश्वरत्व सम्बन्ध में कोई भी सन्देह नहीं कर सकता। श्रीकृष्ण ने स्वयं ही कहा है— 'अवजानंति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।' मूढ़ लोग मुझको मनुष्य देहाश्रित समझकर मेरी अवज्ञा करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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