श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
जि—अच्छा, श्रीकृष्ण का वास्तविक रूप कैसा था ? वे क्या सभी के सामने एक ही रूप में प्रकट होते थे ? यद्यपि सभी रूप बिलकुल एक-से नहीं थे तथापि एक ही थे, ऐसा कहा जा सकता है। परन्तु यह उनकी ऐश्वर्य-भूमिका रूप है- माधुर्य मण्डल में तो उनकी द्विभुज मूर्ति ही प्रकट होती है। पद्मपुराण के निर्वाण खण्ड में कहा है कि भगवान ने ब्रह्मा को अपने वेदगोप्य स्वरूप के दर्शन कराये थे। यह नवकिशोर नटवर मूर्ति है- गोपवेश है, कदम्ब के नीचे हाथ में वंशी लिये विराजमान है, वर्ण मेघ के सदृश श्यामल है, पीतवसन पहने है, गले में वनमाला सुशोभित है, वदन पर स्मित हास्य है, चारों और गोपबालक और और गोप-बालिकाएँ खड़ी हैं। ऐसा रूप अप्राकृत वृन्दावन में नित्य विराजमान है। किसी की क्षमता है जो इस अनन्त सौन्दर्य के चैतन्यमय आधार को भाषा के द्वारा विकसित कर सके? ऐसी चेष्टा करना ही व्यर्थ है। परन्तु इसके अतिरिक्त भी श्रीकृष्ण के अनन्त प्रकार के रूप और हैं, देखने की शक्ति प्राप्त होने पर किसी देन निश्चय हो उनके दर्शन कर सकोगे। उनकी कृपा के बल से सभी कुछ हो सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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