पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
अन्याय स्थलों में भी भगवद्विग्रह को स्पष्टरूप से नित्य और चिन्मय ही बतलाया गया है।<br /> | अन्याय स्थलों में भी भगवद्विग्रह को स्पष्टरूप से नित्य और चिन्मय ही बतलाया गया है।<br /> | ||
'''जि–''' अच्छा, [[श्रीकृष्ण]] तो स्वयं भगवान थे, श्रीमद्भागवत में कहा गया है– '''‘कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’'''। यदि यही बात है तो उनकी देह भी अप्राकृत और नित्यान्दमय ही होनी चाहिये। परन्तु नित्य देह का उन्होंने त्याग किस प्रकार किया? उनके देहत्याग का वर्णन महाभारत और पुराणों में स्पष्ट रूप से मिलता है।<br /> | '''जि–''' अच्छा, [[श्रीकृष्ण]] तो स्वयं भगवान थे, श्रीमद्भागवत में कहा गया है– '''‘कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’'''। यदि यही बात है तो उनकी देह भी अप्राकृत और नित्यान्दमय ही होनी चाहिये। परन्तु नित्य देह का उन्होंने त्याग किस प्रकार किया? उनके देहत्याग का वर्णन महाभारत और पुराणों में स्पष्ट रूप से मिलता है।<br /> | ||
− | + | ||
| style="vertical-align:bottom;"| | | style="vertical-align:bottom;"| | ||
[[चित्र:Next.png|right|link=कृष्णांक पृ. 158]] | [[चित्र:Next.png|right|link=कृष्णांक पृ. 158]] |
15:35, 30 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
ॠषियों के अनुभव और वर्णन की विशेषताओं के कारण भगवान के रूप के संबंध में नाना प्रकार के विकल्प उत्पन्न हो गये हैं। परन्तु वस्तुत: भगवत तत्त्व में देह और देही का कोई पार्थक्य न होने के कारण मूल में किसी प्रकार के विकल्प को स्थान ही नहीं है। कारण, भगवान सच्चिदानन्दस्वरूप है, इसलिये इनका विग्रह या रूप भी सच्चिदानंदमय ही है। सुतरां उसकी नित्यता स्वभावसिद्ध है। महावाराह-पुराण में कहा है– अन्याय स्थलों में भी भगवद्विग्रह को स्पष्टरूप से नित्य और चिन्मय ही बतलाया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
छुपाई हुई श्रेणी: