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'''जि–''' इन सब तत्त्वों का समझना बहुत ही कठिन मालूम होता है। इन विषयों की विशेष आलोचना से पहले जीव के देह-संबंध में कुछ जानने की इच्छा होती है। जीव-देह का रहस्य समझ में आ जाने पर भगवद्देह का रहस्य समझना सहज होगा। जीव के कितनी देह हैं ? | '''जि–''' इन सब तत्त्वों का समझना बहुत ही कठिन मालूम होता है। इन विषयों की विशेष आलोचना से पहले जीव के देह-संबंध में कुछ जानने की इच्छा होती है। जीव-देह का रहस्य समझ में आ जाने पर भगवद्देह का रहस्य समझना सहज होगा। जीव के कितनी देह हैं ? | ||
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− | '''व–''' भगवत-स्वरूप ही भगवद्देह है, वह चिदानन्दमय है, यह बात पहले कही जा चुकी है। स्थूल, सूक्ष्म और कारण– | + | '''व–''' भगवत-स्वरूप ही भगवद्देह है, वह चिदानन्दमय है, यह बात पहले कही जा चुकी है। स्थूल, सूक्ष्म और कारण– यह त्रिविध जड़ या मायिक देह उनके नहीं हैं। जड़ देह धारण करने के लिये अभिमान चाहिये, वह भगवान में नहीं है, सुतरां जड़ द्रव्य भगवद्देह नहीं हो सकती। परन्तु अभिमान न होने पर भी आवश्यक होने पर वे अभिमान की रचना करके उसका आश्रय कर जड़ देह ग्रहण कर सकते हैं। परन्तु इतना स्मरण रखना चाहिये कि यह अभिमान आगन्तुक है और ऐसी ही यह देह भी है। स्वरूपत: जीव के भी जड़देह नहीं है। जीव का स्वरूप भी चिन्मय है। परन्तु जीव भेद-दृष्टि से भगवदंश होने के कारण आत्मविस्मृतावस्था में जड़देह का अभिमान कर सकता है। |
अभिमान की निवृत्ति न होने तक जीव की जड़ देह रहेगी ही। अवश्य ही भगवत्-परिकर-भावसम्पन्न जीवों के संबंध में यह नियम सर्वदा लागू नहीं होता। भगवान की भाँति वे भी आहार्य या आगन्तुक अभिमान का आश्रय कर नवसृष्ट या पूर्वसृष्ट देह में अनुप्रविष्ट हो सकते हैं। साधारण जीव जो कि भगवद्धाम के साथ संसृष्ट नहीं है– माया के प्रभाव से आत्मविस्मृत होकर प्राकृत जगत में पतित होते हैं और प्राकृत देह में अभिमान करते हैं। उनका अभिमान ज्ञानोदय के पूर्व क्षणतक वास्तविक होता है– आत्मज्ञान उदय होने पर वह कट जाता है, साथ-ही-साथ देह-संबंध भी टूट जाता है। | अभिमान की निवृत्ति न होने तक जीव की जड़ देह रहेगी ही। अवश्य ही भगवत्-परिकर-भावसम्पन्न जीवों के संबंध में यह नियम सर्वदा लागू नहीं होता। भगवान की भाँति वे भी आहार्य या आगन्तुक अभिमान का आश्रय कर नवसृष्ट या पूर्वसृष्ट देह में अनुप्रविष्ट हो सकते हैं। साधारण जीव जो कि भगवद्धाम के साथ संसृष्ट नहीं है– माया के प्रभाव से आत्मविस्मृत होकर प्राकृत जगत में पतित होते हैं और प्राकृत देह में अभिमान करते हैं। उनका अभिमान ज्ञानोदय के पूर्व क्षणतक वास्तविक होता है– आत्मज्ञान उदय होने पर वह कट जाता है, साथ-ही-साथ देह-संबंध भी टूट जाता है। |
12:26, 30 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
जि– इन सब तत्त्वों का समझना बहुत ही कठिन मालूम होता है। इन विषयों की विशेष आलोचना से पहले जीव के देह-संबंध में कुछ जानने की इच्छा होती है। जीव-देह का रहस्य समझ में आ जाने पर भगवद्देह का रहस्य समझना सहज होगा। जीव के कितनी देह हैं ? व– साधारण तौर पर यही जान लो कि जीव के तीन देह हैं; यद्यपि इसके अन्दर भी बहुत-सी सूक्ष्म बातें हैं। स्थूल, सूक्ष्म और कारण– जीव के यह तीन प्रकार की जड़ देह भी हैं, जो चैतन्यमय है। जि– भगवान के भी इसी तरह के देह हैं ? अभिमान की निवृत्ति न होने तक जीव की जड़ देह रहेगी ही। अवश्य ही भगवत्-परिकर-भावसम्पन्न जीवों के संबंध में यह नियम सर्वदा लागू नहीं होता। भगवान की भाँति वे भी आहार्य या आगन्तुक अभिमान का आश्रय कर नवसृष्ट या पूर्वसृष्ट देह में अनुप्रविष्ट हो सकते हैं। साधारण जीव जो कि भगवद्धाम के साथ संसृष्ट नहीं है– माया के प्रभाव से आत्मविस्मृत होकर प्राकृत जगत में पतित होते हैं और प्राकृत देह में अभिमान करते हैं। उनका अभिमान ज्ञानोदय के पूर्व क्षणतक वास्तविक होता है– आत्मज्ञान उदय होने पर वह कट जाता है, साथ-ही-साथ देह-संबंध भी टूट जाता है। |