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− | नारद ने कहा- ‘यह तेरे विनाश काल की विपरीत बुद्धि है। मैं जो कह रहा हूँ वह इतिहास का सिद्धान्त नहीं है, धर्म का सिद्धान्त है; वह सनातन सत्य है। वसुदेव व देवकी के आठ बालकों में से एक के हाथों अवश्य ही तेरी मृत्यु होगी। तेरे लिये एक ही उपाय है। अब भी | + | '''नारद''' ने कहा- ‘यह तेरे विनाश काल की विपरीत बुद्धि है। मैं जो कह रहा हूँ वह इतिहास का सिद्धान्त नहीं है, धर्म का सिद्धान्त है; वह सनातन सत्य है। वसुदेव व देवकी के आठ बालकों में से एक के हाथों अवश्य ही तेरी मृत्यु होगी। तेरे लिये एक ही उपाय है। अब भी पश्चात्ताप कर; और श्रीहरि की शरण जा।’ |
− | अभिमानी कंस ने तिरस्कारयुक्त हाथ से उत्तर दिया- ‘समर भूमि में पराजित हुए बिना सम्राट पश्चाताप नहीं करते।’ ‘तथास्तु’ कहकर निराशनारद चले गये। कंस ने सोचा, अब तक के सम्राट सफल नहीं हुए, इसका एक कारण था, उनकी गफलत; वे काफी सावधान रहना नही जानते थे। यदि मैं भी | + | अभिमानी कंस ने तिरस्कारयुक्त हाथ से उत्तर दिया- ‘समर भूमि में पराजित हुए बिना सम्राट पश्चाताप नहीं करते।’ ‘तथास्तु’ कहकर निराशनारद चले गये। कंस ने सोचा, अब तक के सम्राट सफल नहीं हुए, इसका एक कारण था, उनकी गफलत; वे काफी सावधान रहना नही जानते थे। यदि मैं भी गाफ़िल रहा तो मुझे भी पराजित होना पडे़गा। परन्तु इसकी परवा नहीं। जो वीर है, वह हमेशा जय के लिये जोड़ तोड़ प्रयत्न करें और पराजय के लिये तैयार रहे। हार जाने में बुराई नहीं है; परन्तु धर्म के नाम पर शरण जाने में बदनामी है, धर्म का साम्राट साधु-सन्त वैरागी और देव ब्राह्मणों को मुबारक रहे; मैं तो सम्राट हूँ और एक ही शक्ति को पहचानता हूँ।’ |
− | श्रीकृष्ण जन्म के समय ईश्वरी लीला प्रबल रही और श्रीकृष्ण परमात्मा के बदले कन्या देह धारी याक्ति कंस के हाथ आयी। कंस ने उसे जमीन पर पछाड़ा; | + | क्रूर बनकर कंस ने [[वसुदेव]] के सात निरपराध अर्भकों का खून किया श्रीकृष्ण जन्म के समय ईश्वरी लीला प्रबल रही और श्रीकृष्ण परमात्मा के बदले कन्या देह धारी याक्ति कंस के हाथ आयी। कंस ने उसे जमीन पर पछाड़ा; परन्तु कहीं शक्ति शक्ति से मरने वाली थी? वसुदेव ने गुप्त रूप रीति से [[श्रीकृष्ण]] को गोकुल में रखा। परन्तु परमात्मा को तो कोई भी बात छिपानी नहीं थी। परमात्मा को कौन विज्ञापन का डर (Sin of secrecy) था। शक्ति ने अट्टहास के साथ दिड्मूढ़ बने हुए केस से कहा- ‘तेरा शत्रु तो गोकुल मे दिन दूना और राज चौगुना बढ़ रहा है।’ मथुरा से गोकुल वृन्दावन बहुत दूर नहीं है। शायद चार-पाँच कोस भी नहीं है। कंस ने कृष्ण को मारने में जितने सूझे, प्रयत्न किये। परन्तु वह यही न समझ सका कि श्रीकृष्ण की मौत किसमें है। |
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11:11, 30 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
जन्माष्टमी
नारद ने कहा- ‘यह तेरे विनाश काल की विपरीत बुद्धि है। मैं जो कह रहा हूँ वह इतिहास का सिद्धान्त नहीं है, धर्म का सिद्धान्त है; वह सनातन सत्य है। वसुदेव व देवकी के आठ बालकों में से एक के हाथों अवश्य ही तेरी मृत्यु होगी। तेरे लिये एक ही उपाय है। अब भी पश्चात्ताप कर; और श्रीहरि की शरण जा।’ अभिमानी कंस ने तिरस्कारयुक्त हाथ से उत्तर दिया- ‘समर भूमि में पराजित हुए बिना सम्राट पश्चाताप नहीं करते।’ ‘तथास्तु’ कहकर निराशनारद चले गये। कंस ने सोचा, अब तक के सम्राट सफल नहीं हुए, इसका एक कारण था, उनकी गफलत; वे काफी सावधान रहना नही जानते थे। यदि मैं भी गाफ़िल रहा तो मुझे भी पराजित होना पडे़गा। परन्तु इसकी परवा नहीं। जो वीर है, वह हमेशा जय के लिये जोड़ तोड़ प्रयत्न करें और पराजय के लिये तैयार रहे। हार जाने में बुराई नहीं है; परन्तु धर्म के नाम पर शरण जाने में बदनामी है, धर्म का साम्राट साधु-सन्त वैरागी और देव ब्राह्मणों को मुबारक रहे; मैं तो सम्राट हूँ और एक ही शक्ति को पहचानता हूँ।’ क्रूर बनकर कंस ने वसुदेव के सात निरपराध अर्भकों का खून किया श्रीकृष्ण जन्म के समय ईश्वरी लीला प्रबल रही और श्रीकृष्ण परमात्मा के बदले कन्या देह धारी याक्ति कंस के हाथ आयी। कंस ने उसे जमीन पर पछाड़ा; परन्तु कहीं शक्ति शक्ति से मरने वाली थी? वसुदेव ने गुप्त रूप रीति से श्रीकृष्ण को गोकुल में रखा। परन्तु परमात्मा को तो कोई भी बात छिपानी नहीं थी। परमात्मा को कौन विज्ञापन का डर (Sin of secrecy) था। शक्ति ने अट्टहास के साथ दिड्मूढ़ बने हुए केस से कहा- ‘तेरा शत्रु तो गोकुल मे दिन दूना और राज चौगुना बढ़ रहा है।’ मथुरा से गोकुल वृन्दावन बहुत दूर नहीं है। शायद चार-पाँच कोस भी नहीं है। कंस ने कृष्ण को मारने में जितने सूझे, प्रयत्न किये। परन्तु वह यही न समझ सका कि श्रीकृष्ण की मौत किसमें है। |