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− | मैं सर्व प्रकार दीन थी, आप भी दीनबन्धु हैं, अतएव देवकी के समान सौभाग्यशालिनी एवं आपकी परमभक्त न होने पर भी आपने पद-पद पर मेरी रक्षा की। इससे आपकी निरपेक्ष दयालुता और परदुःखहरण की तत्परता स्पष्ट प्रमाणित होती है। आपको ऊँच-नीच, उत्तम-अधम आदि किसी का भी पक्षपात नहीं है। जो कोई भी आपके श्रीचरणों का अनन्याश्रय लेकर शरण में आ जाता है आप उसी के हो जाते हैं। श्रीभगवान ने | + | मैं सर्व प्रकार दीन थी, आप भी दीनबन्धु हैं, अतएव देवकी के समान सौभाग्यशालिनी एवं आपकी परमभक्त न होने पर भी आपने पद-पद पर मेरी रक्षा की। इससे आपकी निरपेक्ष दयालुता और परदुःखहरण की तत्परता स्पष्ट प्रमाणित होती है। आपको ऊँच-नीच, उत्तम-अधम आदि किसी का भी पक्षपात नहीं है। जो कोई भी आपके श्रीचरणों का अनन्याश्रय लेकर शरण में आ जाता है आप उसी के हो जाते हैं। श्रीभगवान ने कुन्ती जी की किन-किन आपत्तियों से किस-किस प्रकार रक्षा की थी, वे सब बातें यहाँ स्थानाभाव के कारण नहीं लिखी जाती। जो जानना चाहे वे महाभारत से जान सकते हैं। |
जिन आपत्तियों की अवस्था में श्रीभगवान के साक्षात दर्शन हाते हैं उन विपत्तियों का महत्त्व सुख-समृद्धि की अवस्था से कहीं अधिक समझती हुई श्रीकुन्ती जी भगवान से करबद्ध होकर यही प्रार्थना करती हैं-<poem style="text-align:center;"> | जिन आपत्तियों की अवस्था में श्रीभगवान के साक्षात दर्शन हाते हैं उन विपत्तियों का महत्त्व सुख-समृद्धि की अवस्था से कहीं अधिक समझती हुई श्रीकुन्ती जी भगवान से करबद्ध होकर यही प्रार्थना करती हैं-<poem style="text-align:center;"> |
16:55, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-प्रयोजन तथा परत्व
मैं सर्व प्रकार दीन थी, आप भी दीनबन्धु हैं, अतएव देवकी के समान सौभाग्यशालिनी एवं आपकी परमभक्त न होने पर भी आपने पद-पद पर मेरी रक्षा की। इससे आपकी निरपेक्ष दयालुता और परदुःखहरण की तत्परता स्पष्ट प्रमाणित होती है। आपको ऊँच-नीच, उत्तम-अधम आदि किसी का भी पक्षपात नहीं है। जो कोई भी आपके श्रीचरणों का अनन्याश्रय लेकर शरण में आ जाता है आप उसी के हो जाते हैं। श्रीभगवान ने कुन्ती जी की किन-किन आपत्तियों से किस-किस प्रकार रक्षा की थी, वे सब बातें यहाँ स्थानाभाव के कारण नहीं लिखी जाती। जो जानना चाहे वे महाभारत से जान सकते हैं। जिन आपत्तियों की अवस्था में श्रीभगवान के साक्षात दर्शन हाते हैं उन विपत्तियों का महत्त्व सुख-समृद्धि की अवस्था से कहीं अधिक समझती हुई श्रीकुन्ती जी भगवान से करबद्ध होकर यही प्रार्थना करती हैं- हे जगद्गुरु ! हमें पद-पद पर सर्वदा आपत्तियों का ही सामना करना पड़े जिससे कि जन्म मरण के चक्र से छुड़ाने वाला आपका पुण्य दर्शन प्राप्त होता रहे, क्योंकि प्रभो ! अप तो अकिञ्चनबन्धु हैं, अतः आप अकिन्चन भक्तों के ही दृष्टिपथ के पथिक होते हैं। |