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− | इससे उनका यही भाव है कि आपके समस्त प्रेमियों में मेरे भाई महाभाग वसुदेवजी परम धन्य हैं, जिन्हें आपके पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उनसे भी बड़भागिनी आपकी स्नेहमयी जननी | + | इससे उनका यही भाव है कि आपके समस्त प्रेमियों में मेरे भाई महाभाग वसुदेवजी परम धन्य हैं, जिन्हें आपके पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उनसे भी बड़भागिनी आपकी स्नेहमयी जननी श्रीदेवकी जी हैं जिनके गर्भ में स्थित होकर आपने सब प्रकार से उनकी श्री-वृद्धि की। उनसे भी विशेष धन्यवाद के पात्र प्रेममूर्ति बाबा श्रीनन्द जी हैं जिन्होंने आपकी अनुपम बाल लीलाओं का अनिर्वचनीय रसास्वादन किया। |
− | श्रीव्रजराज से भी कहीं अधिक महाभागा श्रीयशोदा मैया हैं जिनके सौभाग्य का उल्लेख आगे 31वें लोक में किया गया है। किन्तु श्रीभगवान की बाललीलाओं से भी व्रजभूमि में की हुई किशोर लीलाओं का माधुर्य कहीं अधिक है। इसीलिये सबसे पीछे | + | श्रीव्रजराज से भी कहीं अधिक महाभागा [[यशोदा|श्रीयशोदा मैया]] हैं जिनके सौभाग्य का उल्लेख आगे 31वें लोक में किया गया है। किन्तु श्रीभगवान की बाललीलाओं से भी व्रजभूमि में की हुई किशोर लीलाओं का माधुर्य कहीं अधिक है। इसीलिये सबसे पीछे श्रीकुन्ती जी ने भगवान ‘की गोविन्द नाम से वन्दना की है। स्मरण रखना चाहिये कि श्रीभगवान का यह ‘गोविन्द’ नाम श्रीगोवर्धन धारण के अनन्तर ही अभिषेक के समय इन्द्र की स्तुति में रखा गया था। उस समय श्रीकृष्ण भगवान किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके थे। भगवान सबकी इन्द्रियों (गाः)- को आकर्षण करके अर्थात अपनी ओर खींचकर प्राप्त (विन्द से) होते हैं। इसीलिये उनका नाम ‘श्रीगोविन्द’ है। |
− | अहा ! श्रीभगवान की उन किशोर लीलाओं में कैसा असाधारण माधुर्य भरा हुआ है जिसका गुप्तरूप से आस्वादन करते हुए रसिक भक्तजन कभी भी नहीं ऊबते। | + | अहा ! श्रीभगवान की उन किशोर लीलाओं में कैसा असाधारण माधुर्य भरा हुआ है जिसका गुप्तरूप से आस्वादन करते हुए रसिक भक्तजन कभी भी नहीं ऊबते। कुन्ती जी कहती हैं- ‘भगवान ! यद्यपि मेरी गणना उन अतिशय सौभाग्यशालियों में नहीं हो सकती तथापि आपके इस वर्तमान रूप माधुरी का अविरल पानकर मेरे नेत्र ठण्डे हो रहे हैं। इसी भाव को व्यक्त करने के लिये ‘पंकजनाभ’ ‘पंकजमाली’ आदि विशेषणों द्वारा कुन्ती जी ने स्तुति की है। |
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16:30, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-प्रयोजन तथा परत्व
इससे उनका यही भाव है कि आपके समस्त प्रेमियों में मेरे भाई महाभाग वसुदेवजी परम धन्य हैं, जिन्हें आपके पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उनसे भी बड़भागिनी आपकी स्नेहमयी जननी श्रीदेवकी जी हैं जिनके गर्भ में स्थित होकर आपने सब प्रकार से उनकी श्री-वृद्धि की। उनसे भी विशेष धन्यवाद के पात्र प्रेममूर्ति बाबा श्रीनन्द जी हैं जिन्होंने आपकी अनुपम बाल लीलाओं का अनिर्वचनीय रसास्वादन किया। श्रीव्रजराज से भी कहीं अधिक महाभागा श्रीयशोदा मैया हैं जिनके सौभाग्य का उल्लेख आगे 31वें लोक में किया गया है। किन्तु श्रीभगवान की बाललीलाओं से भी व्रजभूमि में की हुई किशोर लीलाओं का माधुर्य कहीं अधिक है। इसीलिये सबसे पीछे श्रीकुन्ती जी ने भगवान ‘की गोविन्द नाम से वन्दना की है। स्मरण रखना चाहिये कि श्रीभगवान का यह ‘गोविन्द’ नाम श्रीगोवर्धन धारण के अनन्तर ही अभिषेक के समय इन्द्र की स्तुति में रखा गया था। उस समय श्रीकृष्ण भगवान किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके थे। भगवान सबकी इन्द्रियों (गाः)- को आकर्षण करके अर्थात अपनी ओर खींचकर प्राप्त (विन्द से) होते हैं। इसीलिये उनका नाम ‘श्रीगोविन्द’ है। अहा ! श्रीभगवान की उन किशोर लीलाओं में कैसा असाधारण माधुर्य भरा हुआ है जिसका गुप्तरूप से आस्वादन करते हुए रसिक भक्तजन कभी भी नहीं ऊबते। कुन्ती जी कहती हैं- ‘भगवान ! यद्यपि मेरी गणना उन अतिशय सौभाग्यशालियों में नहीं हो सकती तथापि आपके इस वर्तमान रूप माधुरी का अविरल पानकर मेरे नेत्र ठण्डे हो रहे हैं। इसी भाव को व्यक्त करने के लिये ‘पंकजनाभ’ ‘पंकजमाली’ आदि विशेषणों द्वारा कुन्ती जी ने स्तुति की है। |