श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘नादब्रह्म - मोहन की मुरली’तीसरी एक मुरली के साथ ईर्ष्या करती हुई बड़े विनय युक्त शब्दों में मुरली से पूछती है-
मुरली उत्तर देती है-
मैंने बड़े-बड़े तप किये हैं, जीवनभर सिर जाड़ा और वर्षा सहती रहीं, ग्रीष्म की ज्वाला में मैंने तन को तपाया। काटी गयी, शरीर को सात स्वरों से छिदवाया। हृदय को शून्य कर दिया। कहीं कोई गाँठ नहीं रहने दी। इतना तप करने पर लाल ने मुझको वरा है। |
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