श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा के दिव्य रूप और उनके आराधन का महत्त्व
परात्पर परमतत्त्व-स्वरूप एक है। उसकी प्रधानतया तीन नामरूपों में अभिव्यक्ति होती है—‘ब्रह्म’, ‘परमात्मा’ और ‘भगवान’ —या यों कह सकते हैं - ‘निर्गुण-निराकार-निर्विशेष’, ‘सगुण-निराकार-सविशेष’ और ‘सगुण-साकार-सविशेष।’ तीनों की पृथक-पृथक अनुभूति होती है- तीन प्रकार के साधकों को। निर्गुण-निराकार ब्रह्म की ज्ञानियों को, सगुण-निराकार की योगियों को और सगुण-साकार की भक्तों को। |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ श्रीमद्भागवत 1। 2। 11
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