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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
परिशिष्टश्रीराधा, श्रीराधा-नाम और राधा-उपासना सनातन हैकुछ महानुभावों का कथन है कि श्रीकृष्ण चरित्र में गोपीचरित्र का, खास करके श्रीराधा चरित्र का समावेश अत्यन्त आधुनिक है। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि ‘अधिक-से-अधिक तीन-चार सो वर्षों से ही इसका प्रचलन हुआ है। न तो प्राचीन ग्रन्थों में राधा का नाम है, न खास प्राचीनतम पुराणों में ही। श्रीमगवत में भी राधा का नाम नहीं है।’ यद्यपि सिद्ध तथा साधक भक्तों की दृष्टि में इन सब आलोचानाओं का तनिक भी महत्त्व नहीं है। सिद्ध तो अपने प्रत्यक्ष अनुभव से भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधा और श्रीगोपीजन की सत्यता को जान चुके हैं तथा साधक अपनी श्रद्धा की आँखों से नित्य ही उनको देखते रहते हैं- पर सभी के लिये ऐसी बात नहीं है। ऐसे लोगों के लिये यह निवेदन है कि श्रीराधा नित्य हैं और श्रीराधा का नाम तथा उनकी उपासना सनातन है। महाकवि भास के द्वारा ‘बालचरित’ नाटक में गोपियों का प्रसगं तथा उनके रूप-सौन्दर्य का बड़ा सुन्दर वर्णन आता है। भास का समय विद्वान लोग ईसापूर्व चतुर्थ शती से लेकर ईसा की तृतीय शती मानते हैं। तृतीय शती भी माना जाय तो भी ‘बालचरित’ अब से लगभग 1700 वर्ष पूर्व की रचना है। हाल की ‘गाहा सत्तसई’ (गाथा सप्तशती) की रचना ईसा की प्रथम शती में तो मानी ही जाती है; क्योंकि हाल का संस्कृत नाम शालिवाहन था जो ईसा की प्रथम शती में प्रतिष्ठानपुर में राजय करते थे। उनका कथन है कि प्राकृत की करोड़ों गाथाओं में से चुनकर उन्होंने यह सरस संग्रह किया है। अतएव इन गाथाओं को उनसे भी पहले की मानना पड़ता है। इस ‘गाह्य सत्तसई’ में श्रीराधिका (राहिका) कृष्ण (कण्ह) और श्रीकृष्णजननी यशोदा (जसोआ) तथा व्रजवधू गोपागंनाओं (बअबहूहिं) का स्पष्ट उल्लेख है। देखिये-
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