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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधामाधव का दिव्य स्वरूप
श्रीराधामाधव-प्रेमतत्त्व और रसतत्त्वभगवान श्रीकृष्ण सच्चिदानन्दस्वरूप हैं। सत, चित, आनन्द-ये तीनों शक्तियाँ नित्य ही पूर्ण रूप में उनके स्वरूपगत हैं। शक्ति और शक्तिमान् में कोई भेद नहीं होता। इन परात्पर भगवान के सिवा अन्य कुछ भी नहीं है। पर इनकी शक्तियाँ जहाँ अमूर्तरूप में हैं, वहाँ लीला का प्राकट्य नहीं है और जहाँ मूर्तरूप में हैं, वहाँ वे नित्य अभिन्न होते हुए भी भिन्न रूप में स्थित होकर नित्य लीला करती रहती हैं। जिस स्वरूप में लीला का प्राकट्य नहीं है, वह भगवान का ‘निर्विशेष ब्रह्मरूप’ है और जहाँ लीला का प्राकट्य है, वहाँ वे ‘सगुण निराकार परमात्मा’ और ‘सगुण साकार लीलापुरुषोत्तम भगवान’ हैं। भगवान की अभिन्न स्वरूपाशक्ति की लीला के अनन्त भेद हैं; पर उनमें चिच्छक्ति, मायाशक्ति और जीवशक्ति -ये तीन प्रधान हैं। चिच्छक्ति, ‘अन्तरगां’, मायाशक्ति ‘बहिरगां’ और जीवशक्ति ‘तटस्था’ हैं। ये मायाशक्ति और जीवशक्ति ही गीतोक्त ‘परा’ और ‘अपरा’ प्रकृतियाँ हैं। |
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