श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव का महत्त्व, स्वरूप, तत्त्व और सम्बन्ध
सं. 2015 वि. के श्रीराधाष्टमी-महोत्सव पर प्रवचन
जीवमात्र आनन्द की इच्छा करते हैं- पूर्ण, नित्य और अखण्ड आनन्द चाहते हैं और अनवरत आनन्द के ही अनुसंधान में लगे हैं। वे आनन्द के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहते; क्योंकि सब आनन्द से ही निकले हैं, आनन्द में ही निवास कर रहे हैं और आनन्द में ही उन्हें लौट जाना है, परंतु आनन्द है क्या वस्तु और वह कहाँ है तथा कैसे प्राप्त हो सकता है, इस बात को जीव भूल गया है और इसी से वह स्त्री-स्वामी, पिता-पुत्र, धन-सम्मान, पद-अधिकार आदि विनाशी प्राणी-पदार्थों में आनन्द की खोज करता है। वस्तुतः आनन्दघन तो हैं भगवान श्रीकृष्ण ही। |
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