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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव का महत्त्वस्वरूपतत्त्व और सम्बन्धनाथ! पुत्र, मित्र, गृह आदि से घिरे हुए संसार-सागर में आप ही मेरी रक्षा करते हैं। आप ही शरणागत जनों का भय भंजन करते हैं। यह मैं, मेरा यह देह और इहलोक-परलोक में जो कुछ भी मेरा है, आज वह सब मैं आपके श्रीचरणों में समर्पण करता हूँ। मैं अपराधों का घर हूँ। मेरे अन्य कोई साधन नहीं हैं, मेरी कोई गति नहीं है। नाथ! आप ही मेरी गति हैं। श्रीराधिकारमण! श्रीकृष्णकान्ते! मैं तन-मन-वचन से आपका ही हूँ, आप युगल-सरकार ही मेरी अनन्य गति हैं। मैं आपके शरण हूँ, आपके चरणों में पड़ा हूँ, आप करुणा की खान हैं। मुझ दुष्ट अपराधी पर कृपा करके मुझे अपना दास बना लीजिये।’ बोलो श्रीकीर्तिकुमारी वृषभानुनन्दिनी कृष्णानन्दिनी राधारानी की जय! श्रीश्रीराधा के परम भाव-राज्य की एक झाँकी<center> (सं. 2016 वि. के श्रीराधाष्टमी-महोत्सव पर प्रवचन)
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- ↑ श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्र
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