श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-स्वरूप-गुण-महिमासं. 2018 वि. के श्रीराधाष्टमी-महोत्सव पर प्रवचन
भगवानृ सत्-चित्-आनन्दपूर्ण हैं। उनके ‘सत्’ अंश की शक्ति का नाम है ‘संधिनी’, चिदंश की शक्ति का नाम है ‘संवित्’ और आनन्दांश की शक्ति का नाम है ‘ह्लादिनी’। श्रीकृष्ण स्वयं परमाह्लाद स्वरूप होकर भी जिसके द्वारा स्वयं आह्लादित होते और दूसरों को आह्लादित करते हैं, उसका नाम है ‘ह्लादिनी’; स्वयं ज्ञान स्वरूप होकर भी जिसके द्वारा वे जान सकते और दूसरों को जना सकते हैं- उसका नाम है ‘संवित्’ और स्वयं नित्य सत्ता स्वरूप होकर भी जिसके द्वारा अपनी तथा दूसरों की सत्ता धारण करते हैं, उसका नाम ‘संधिनी’ है। ‘भगवान सदैव सोम्येदमग्र आसीदित्यत्र सद्रूपत्वेन व्यपदिश्यमानो यया सत्तां दधाति धारयति च सा सर्वदेशकालद्रव्यादिप्राप्तिकरी संधिनी। तथा संविद्रूपोऽपि यया संवेत्ति संवेदयति च सा संवित। तथा ह्लादरूपोऽपि यया संविदुत्कर्षरूपया तं ह्लांद संवेदयति च सा ह्लादिनीति विवेचनीयम।[1] |
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- ↑ भगवत्संदर्भ 118
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