श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवदवतार का रहस्यप्रश्न-जय-विजयादि-सरीखे दुष्कृतियों की और प्रेमधर्म-स्थापना की बात तो समझ में आ गयी, परंतु गोपांगनाओं के परित्राण की बात कुछ समझ में नहीं आती। उनको क्या दुःख था जिससे भगवान के साक्षात अवतीर्ण हुए बिना वे उससे नहीं छूट सकती थीं? उत्तर-सौन्दर्य-माधुर्य-सुधासागर नटनागर भगवान के दिव्याति-दिव्य मंगल स्वरूप के दर्शन की लालसा ही उनका महान दुःख था। वे इसी घोर विरहताप से संतप्त थीं, उनका यह ताप बिना श्रीभगवान के साक्षात मिलन के मिट ही नहीं सकता था। इस दुःख से परित्राण करने के लिये ही भगवान स्वयं प्रकट हुए। परंतु यहाँ यह नहीं समझना चाहिये कि प्रयोजन का यही एकमात्र स्वरूप है। विभिन्न युगों में प्रयोजनों के विभिन्न स्वरूप होते हैं; परंतु उनके बातें वे तीन ही होती हैं- साधुपरित्राण, दुष्टविनाश और धर्मसंस्थान।
|
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |