श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचार‘(श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ के प्रथम संस्करण पर देश के बहुत-से आदणीय विद्वान् महानुभावों ने अपने विचार लिखकर भेजे थे। उनमें से कुछ को आंशिकरूप से नमूने के तौर पर नीचे जा रहा है।- चिम्मनलाल गोस्वामी) यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भक्ति विषयक कृति है, जिस पर सम्मति देना मेरी क्षमता से परे है। यदि मैं कुछ कह सकता हूँ तो यही कि धर्म की उसके व्यापक अर्थ में आपने अनेक वर्षों से जो निःस्वार्थ सेवा की है और हमारे धार्मिक साहित्य के विशाल भण्डार को जनता के समक्ष आपने जो रखा है, उसकी मैंने सदा ही सराहना की है। यहाँ आप अपने सच्चे भक्त-रूप को प्रकट करते हैं और यह कृति भक्ति-सिद्धान्त की एक व्याख्या है, जो चित्र के माध्यम से व्यक्त हुई है। यह पुस्तक ऐसी नहीं है, जिसे जल्दी से भाग-दौड़ में पढ़ लिया जा सके, अपितु इस प्रकार की पुस्तक का अध्ययन कुछ समय की अपेक्षा रखता है। मेरा विश्वास है कि इस कृति से लाभ उठाने की योग्यता जिनमें है, उस समुदाय में इसका बड़ा सम्मान होगा और न केवल इस पुस्तक के लिये अपितु परम्परा से प्राप्त विशाल धार्मिक साहित्य के पठन-अध्ययन के लिये आप जो करते आ रहे हैं, उसके लिये भी मैं अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। भाई जी ने श्रीराधा-प्रेम की जो अत ज्योति जगायी है, उसका प्रकाश अब दूर-दूर फैल चुका है। उनके द्वारा रचित ‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ ग्रन्थ इस दिशा में बड़ा ठोस कार्य है। श्रीराधा-श्यामसुन्दर के चरणों में भाई जी का सहज और प्रबुद्ध प्रेम उनकी बहुश्रुतता का योग पाकर, इस ग्रन्थ में मुखरित हो उठा है। उनके सुदीर्घ अनुभव और उनकी मजी हुई लेखनी ने प्रेम-तत्त्व के व्याख्यान में एक नयी दिशा दिखायी है, जो सरल और सुबोध होते हुए मार्मिक है। अनुभावियों ने प्रेम मार्ग को तलवार की धार पर दौड़ने के समान कठिन बताया हैं भाई जी के स्थान-स्थान पर इस बात की ओर ध्यान खींचकर बड़ा उपकार किया है। इस ग्रन्थ के वाचन से आनन्द-लाभ और ज्ञान-वर्धन दोनों होते हैं। |
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