श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘नादब्रह्म - मोहन की मुरली’मोहन की मुरली से प्रभावित व्रजधाम की कुछ कल्पना भक्त कवि के उपर्युक्त शब्दों से की जा सकती है। एक गोपी बाँसुरी से तंग आकर अपनी सखियों से कहती है-
दूसरी एक बाँस के साथ की बनी बाँसुरी की तुलना करके और उसे वंश का नाम बिगाड़ने वाली बतलाती हुई कहती है-
दूसरी कहती है- अरी मुरली! तेरे सौभाग्य का क्या कहना है-
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