श्रीनारायणीयम्
नवमदशकम्
लक्ष्मीपते! ‘उपनिषद्-वाक्यसमूह आपके महान ऐश्वर्य का प्रतिपादन करते रहते हैं। हरे! आपकी जय हो, जय हो। प्रभो! सौभाग्य से ही आप मेरे दृष्टिगोचर हुए हैं। अब शीघ्र ही मेरी बुद्धि को लोक निर्माण कार्य में समर्थ बना दीजिए। यों ब्रह्मा द्वारा जिनके गुणों की महिमा का वर्णन किया गया है, ऐसे आप मेरी रक्षा कीजिए।।7।।’
(तदनन्तर) ‘ब्रह्मन्! त्रिलोकी की रचना में कभी क्षीण न होने वाली दक्षता प्राप्त करो, मेरा अनुग्रह लो और पुनः तप करो। साथ ही, तुम्हें मेरे प्रति सब कुछ सिद्ध करने वाली तीव्रतम भक्ति प्राप्त हो’- ऐसी बात कहकर आपने ब्रह्मा के चित्त को हर्षविभोर कर दिया।।8।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज