श्रीनारायणीयम्
द्विनवतितमदशकम्
अयि परमपुरुष! गंगा, गीता, गायत्री, तुलसी, गोपीचन्दन, शालग्राम पूजन, एकादशी व्रत और नाम जप ये आठों पदार्थ कलियुग में अनायास ही उपलब्ध होने वाले हैं और आपकी कृपा के प्रभाव से ये शीघ्र ही मुक्ति प्रदान करने वाले भी हैं- ऐसा ऋषियों का कथन है। अतः भगवन्! मेरे मन को उन्हीं में संलग्न कर दीजिए।।9।।
भूमन्! जो पुरुष समस्त कर्मों का परित्याग करके सर्वभाव से आपके शरणापन्न हो गया है, वह पुनः न तो देव, ऋषि और पितरों का ऋणी ही होता है और न किंकर ही; क्योंकि उसके चित्त में स्थित आप उसके द्वारा संघटित हुए संपूर्ण निषिद्ध कर्मों का विनाश ही कर देते हैं। इसीलिए हे पवनपुरपते! मेरे पापजनित संताप को दूर कर दीजिए और अपनी अनपायिनी भक्ति प्रदान कीजिए।।10।।
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