श्रीनारायणीयम्
पञ्चविंशतितमदशकम्
उस समय आपका विशाल शरीर रुधिर के छीटों से अभिषिक्त हो उठा था। आप उस मरे हुए हिरण्यकशिपु को छोड़कर शीघ्र ही उछले और समस्त दैत्यसमूहों को बारंबार अपना ग्रास बनाने लगे। यह देखकर चराचर जगत् बड़ी दुरावस्था में पड़ गया; धरती घूमने लगी, सागर समूह काँपने लगे, अचल समुदाय चंचल हो गये और आकाशचारी ग्रह-नक्षत्र अपने स्थान से उछल पड़े।।7।।
उस समय मांस और चर्बी के लेप से आपका शरीर भयानक हो गया था। गले में भयंकर आँतों की माला लटक रही थी, आपका क्रोध बढ़ा हुआ था। जिसके कारण आप बारंबार दुर्वार सिंहनाद कर रहे थे। ऐसी दशा में संसार के किसी भी प्राणी ने उस दैत्य सभा में आपके निकट जाने की हिम्मत नहीं की। शिव, ब्रह्मा और इंद्र आदि सभी देव भयभीत हो दूर ही खड़े रहकर बारी-बारी से आपकी स्तुति करते रहे।।8।। |
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