श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
68. यात्रान्त-यज्ञ
श्रीबलराम जी ने इस बार उत्तराखण्ड की यात्रा में सरयू के उद्गम[1] से होते मानसरोवर तक की यात्रा की। फिर सरयू के किनारे- किनारे प्रयाग तक आये। इसके पश्चात पूर्व में गंगा किनारे होते पुलहाश्रम, गण्डकी के उद्गम [2] तक गये। विपाशा तथा शोण की यात्रा अमरकण्टक तक जाकर की। गया में उन अनन्त ने पितरों के निमित्त श्राद्ध किया।[3] यहाँ से वैद्यनाथ होते हुए गंगा-सागर संगम पहुँचे। भगवान कपिल के दर्शन हुए और उनका आतिथ्य स्वीकार करना पड़ा। श्रीजगन्नाथपुर की प्रतिष्ठा तो बहुत पीछे हुई। महेन्द्र पर्वत पर भगवान परशुराम का दर्शन प्राप्त हुआ। उनकी पूजा करके उनसे सत्कृत होकर सप्त गोदावरी[4] वेणा, पम्पा, भीमरथी में स्नान करते हरिहर पर्वत पर कुमार स्कन्द का दर्शन करके श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन का दर्शन करने गये। वेंकटाद्रि जैसे महत्पुण्यक्षेत्र[5] की यात्रा सम्पन्न करते कामकोष्णीपुरी कांची में एकाम्रेश्वर लिंग तथा वरदराज नारायण के दर्शन किये। सरिद्वरा कावेरी के अन्त्यरंगम द्वीप में श्रीरंगक्षेत्र की यात्रा हुई। जहाँ श्रीहरि नित्य सन्निहित रखते हैं। शिवक्षेत्र ऋषभाद्रि तथा दक्षिण मथुरा[6]यात्रा करते हुए महापातक नाशक श्रीरामेश्वरम धनुष्कोटि की बलराम जी ने यात्रा की। कृतमाला, ताम्रपर्णी में स्नान, कुलाचल मलय पर्वत की यात्रा करते हुए महर्षि अगस्त्य के आश्रम पहुँचने पर महर्षि ने बड़े उत्साह से आतिथ्य किया। उनकी वन्दना करके महर्षि का आशीर्वाद लेकर भारत के धुर दक्षिण स्थान पर महासागर के तट पर कन्याकुमारी नामक दुर्गा का दर्शन-पूजन किया। अब पश्चिम समुद्र तट होकर लौटना था। फाल्गुन तीर्थ, पंचाप्सरस[7] स्नान करके प्रसिद्ध शिव क्षेत्र गोकर्ण आये। आर्या द्वैपायनी के दर्शन करते शूर्पारक क्षेत्र और आगे तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या में स्नान करते हुए दण्डकारण्य पहुँचे। नर्मदा किनारे चलते माहिष्मतीपुरी, मनुतीर्थ होकर प्रभास आ गये।[8] इन सब तीर्थों में तीर्थ कृत्य करने के साथ श्रीबलराम जी ने वहाँ के ब्राह्मणों को विपुल धन तथा गोदान किया था। प्रभास पहुँचने पर ब्राह्मणों के द्वारा महाभारत युद्ध का समाचार मिला। श्रीकृष्णचन्द्र जब तक द्वारिका लौटे नहीं थे। अतः श्रीबलराम जी प्रभास से कुरुक्षेत्र चले गये। उन्हें समन्तक पंचक की यात्रा भी करनी थी। जब श्रीबलराम जी कुरुक्षेत्र में समन्तक पंचक सरोवरों के समीप पहुँचे, श्रीकृष्णचन्द्र के साथ पांडव वहीं थे। उस समय दुर्योधन और भीम का गदा युद्ध चलने वाला था। दोनों को श्रीसंकर्षण ने रोका- शान्त हो जाने को कहा, किन्तु दोनों में-से किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। दोनों रोष में उन्मत्त हो रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सौधार
- ↑ नेपाल में मुक्ति नाथ और दामोदरकुण्ड
- ↑ माता पिता दोनों के जीवित होने पर भी गया में पहुँचने पर दिवंगत पितरों के निमित्त श्राद्ध किया जा सकता है, ऐसी विधि है
- ↑ गोदावरी सागर संगम
- ↑ तिरुपति
- ↑ मदुरा
- ↑ यहाँ पाँच नदियों का सागर संगम हैं
- ↑ श्रीमद्भागवत के अनुसार यह वर्णन है। उस समय का मार्ग तो अब है नहीं, बहुत से स्थान, सरिताओं के नाम भी बदल गये हैं। कुछ तीर्थ लुप्त हो गये हैं।
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