श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
5. स्यमन्तक मणि
सत्राजित के लिये भगवान सूर्य दूर नहीं थे। उन्हें लगता कि वे शशिवर्ण, चतुर्भुज नारायण उपासना के समय समीप उतर आते हैं, बातें करते हैं, पूजा स्वीकार करते हैं। यह केवल सत्राजित की कल्पना नहीं थी। भगवान भास्कर उन पर प्रसन्न थे, उन्होंने सत्राजित को एक दिन आग्रह करके अपने प्रेमोपहार के रूप में स्यमंतक मणि देते हुए कहा- 'इसे मेरा स्वरूप ही समझना। इसकी पूजा करना। जहाँ यह मणि सपूजित रहेगी, उस प्रदेश में कोई महामारी, कोई अरिष्ट नहीं आवेगा। इससे आठ भार स्वर्ण प्रतिदिन प्रकट होगा। लेकिन इसे सपूजित- सावधानी से पवित्रता से ही रखना।' सत्राजित ने आदरपूर्वक आराध्य का प्रसाद मानकर मणि लिया और उसे कण्ठ में बाँध लिया। अरुणोदयकालीन सूर्य के समान ज्योतिर्मयी उस मणि को कण्ठ में बाँधकर सत्राजित जब नगर में लौटने लगे, लोगों ने समझा कि साक्षात भगवान सूर्य धरा पर उतर आये हैं। 'देवदेवेश्वर! निखिल लोकाराध्य श्रीद्वारिकानाथ! आपका दर्शन करने भगवान सूर्य आ रहे हैं!' बहुत से युवक एक साथ दौड़े आये और उन्होंने श्रीकृष्णचन्द्र से कहा- 'आप शंख, चक्र, गदाधारी साक्षात नारायण हैं। मनुष्यों में मनुष्य बनकर हम यादवों में छिपे हैं; किन्तु लोक के नेत्राधिदेवता ने आपको पहिचान लिया है।' सूर्यदेव कितना भी अपने तेज को कम करें, कितने भी सौम्य बनें- कहाँ तक बनेंगे। वे द्वारिकाधीश के दर्शनार्थ आ रहे हैं तो उनके नगर में आने से किसी अनर्थ की आशंका तो नहीं है; किन्तु उनका कुछ स्वागत भी तो होना चाहिये। 'ये देव आदित्य नहीं है' श्रीकृष्णचन्द्र ने हँसकर कहा- 'ये सूर्यदेव के भक्त सत्राजित हैं। लगता है भगवान भास्कर ने उन्हें अपना मणि आज प्रदान किया है। उस मणि के तेज से ही प्रकाशमय हो रहे है।' युवक फिर दौड़ गये। सत्राजित अपने भवन चले गये। वहाँ उन्होंने अपने पुरोहित तथा ब्राह्मणों को बुलवाया। विधिपूर्वक मणि की पूजा करके उसकी स्थापना करायी। इस प्रकार यह पद्मराग (लाल) मणि भगवान सूर्य की प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठित हुई। उस मणि से आठ भार स्वर्ण प्रतिदिन प्रकट होने लगा। सत्राजित द्वारिका में प्रसिद्ध दानी और सम्पन्न बन गये थोड़े ही समय में। 'आपको स्यमन्तक मणि महाराज उग्रसेन को अर्पित कर देना चाहिये।' एक दिन श्रीकृष्णचन्द्र ने सत्राजित से कहा। अकस्मात ही सत्राजित से भेंट हो गयी थी। 'प्रजा के पास जो उत्कृष्ट रत्न होते हैं, उनकी शोभा राजा के पास रहने में है। अपने सम्मान्य संरक्षक से अधिक ऐश्वर्य अपने पास रखना किसी के लिए शोभास्पद नहीं है।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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