श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
91. उपसंहार
श्रीकृष्णचन्द्र ने कहा- 'यहाँ तो इस स्वरूप से रहा नहीं जा सकता किन्तु कलियुग में हम तीनों दारु-विग्रह बनकर इसी रूप में रहेंगे।' देवर्षि को दिये गये उस वरदान के फलस्वरूप पुरी में श्रीबलराम, जगन्नाथ तथा सुभद्राजी का वह रूप दारुविग्रह रूप में प्रकट हुआ है। सतयुग का धाम बदरिकाश्रम। वह भगवान नर-नारयण की तपस्थली। तप सतयुग का साधन है और तपोभूमि है वह श्रीबदरीनाथ धाम। त्रेता का धाम श्रीरामेश्वर। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराघवेन्द्र ने इसे स्थापित किया। त्रेता का साधन है यज्ञ। उन मर्यादा पुरुषोत्तम ने स्वयं यज्ञ की दीर्घकालीन दीक्षा ली थी। रामेश्वर धाम यज्ञ दीक्षा एवं शिवार्चन का सर्वोत्तम पुण्य क्षेत्र। द्वापर का धाम कुशस्थली द्वारिका। श्रीद्वारिकाधीश का यह धाम सविधि अर्चा का पुण्यधाम है। कलियुग का धाम नीलांचल। यह धाम नाम संकीर्तन का धाम है और कलि पावनावतार श्रीचैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन का उत्तरकाल यहीं व्यतीत करके जीवों के उद्धार के लिए भगवन्नाम संकीर्तन का ही प्रचार किया। अयोध्या और मथुरा मण्डल तो नित्य भगवद्धाम हैं। युगों के धामों में इनका नाम लेना उचित नहीं है। बदरिकाश्रम में भगवान बदरीनाथ की श्रीमूर्ति का बौद्धकाल में अपहरण हो चुका था। भगवान आदिशंकराचार्य ने अलकनन्दा की धारा से उसको निकालकर पुनः स्थापित किया। श्रीरामेश्वर की वर्तमान स्थापना भी जीर्णोद्धार ही है, यह इतिहासज्ञ जानते हैं और द्वारिका तो समुद्र में तभी डूब गयी थी। श्रीजगन्नाथ की परम्परा स्थापना के पश्चात से अखण्ड है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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