श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
68. यात्रान्त-यज्ञ
श्रीबलराम जी की सम्मति से सब समन्तक पंचक क्षेत्र गये। वहीं भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ दी। बहुत क्रोध आया श्रीसंकर्षण को किन्तु श्रीकृष्ण के समझाने पर शान्त हो गये। वहाँ पांडव आतिथ्य करने की स्थिति में नहीं थे। श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों ने प्रणाम किया। कुरुक्षेत्र से श्रीबलराम जी द्वारिका आये। महाराज उग्रसेन तथा अन्य सभी यादवों ने उनका सत्कार किया। द्वारिका से संपूर्ण यज्ञीय सामग्री, सेवकादि लेकर सपरिवार नैमिषारण्य पहुँचे श्रीबलराम जी। वहाँ ऋषियों ने प्रसन्नतापूर्वक उनके यज्ञ में ऋत्विक होना स्वीकार किया। विधिपूर्वक वहाँ यज्ञ कराया उन ऋषियों ने श्रीसंकर्षण से पत्नियों के साथ उन अनन्त ने अवभृथ स्नान किया। 'दक्षिणा ज्ञानसन्देशः।'[1] परम विरक्त थे वे ऋषि महर्षि मुनिगण। वहाँ पधारे दूसरे ब्राह्मणों ने भरपुर दान प्राप्त किया किन्तु उन ऋषियों के लिए द्रव्य प्रयोजनहीन था। श्रीअनन्त ने, जीवों के उन आद्याचार्य ने उनको ज्ञानोपदेश किया। उनको संतुष्ट करके वहाँ से द्वारिका आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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