कृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
जब एक दीप के प्रकाश का आवरण होने पर भी दूसरे दीपों का प्रकाश उसी स्थान में मौजूद है तो यह छाया की प्रतीति क्यों ? मानना होगा कि प्रकृत दीपक जिस अन्धकार के अंश को हटाता था- उसके प्रकाश का आवरण होने पर वह अंश छायारूप से प्रतीत होता है। इसी प्रकार निविड़ अन्धकार में भी प्रकाश का कुछ भी अंश न रहे तो अन्धकार का प्रत्यक्ष ही न हो सके। बिना प्रकाश की सहायता के नेत्ररश्मि कोई कार्य नहीं कर सकती। सिद्ध हुआ कि गौरतेज आर श्यामतेज- राधा और कृष्ण, अन्योन्य आलिंगितरूप में ही सदा रहते हैं, कभी कृष्ण में राधा छिपी हुई है, कभी राणा के अंचल में कृष्ण दुबक गये हैं। इसी से दोनों एकरूप माने जाते हैं, एक ही ज्योति के दो विकास हैं और एक के बिना दूसरे की उपासना निन्दित मानी गयी है- इस विष्णु रूप परमेष्ठिमण्डल का अवतार होने के कारण भगवान श्रीकृष्ण का श्यामरूप था और गौरवर्ण भगवती श्रीराधा से उनका अन्योन्य तादात्म्य सम्बन्ध था, निरतिशय प्रेम किया। वहाँ राधा (प्रकाश भाग) परमेष्ठिमण्डल की अपनी नहीं, परकीया है, इसलिये यहाँ भी राधा के साथ कृष्ण का विवाह सम्बन्ध नहीं है। परमेष्ठिमण्डल को वेद में ‘गोसव’ और पुराणों में ‘गोलोक’ कहा गया है, इसका कारण है कि गौ-जिन्हें किरण कह सकते हैं, उनकी उत्पत्ति परमेष्ठि मण्डल में ही होती है, आगे के मण्डलों में उन गौओं का विकास है, अतएव सूर्य आर पृथ्वी के प्राणों में ‘गौ’ नाम आया है। इन गौओं का विवरण ब्राह्मण ग्रन्थों में बहुत है, ये प्राण विशेष हैं। हमारे ‘गौ’ नाम से प्रसिद्ध पशु में इस प्राण की प्रधानता रहती है, अतएव यह गौ की हमारी आराध्य है। अस्तु, गौ का उत्पादक और पालक होने से परमेष्ठी गोपाल है, प्रथमतः गौ उसे प्राप्त हुई- इसलिये ‘गोविन्द’ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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