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ऋग्वेद में एक ऋचा व्रज के सम्बन्ध में मिलती है जो इस प्रकार है –
ता वां वास्तून्युश्मसि गमध्यै यत्र गावो भूरिश्रृंगा अयास: अत्राह तदुरुगायस्य वृष्णे: परमं पदमवभाति भूरि।
ता तानि वां युवयो रामकृष्णयोर्वास्तूनि निरम्य स्थानानि गमध्यै गन्तुम् उश्मसि उष्म: कामयामहे न तु तत्र गन्तुं प्रभवाम:। यत्र (वृन्दावनेषु) वास्तुषु भूरिश्रृंगा गाव: अयास: संचरन्ति अत्र भूलोके अह निश्चितं तत् गोलोकाख्यं परमं पदं भूरि अत्यन्तं मुख्यम् उरुभिर्बहुभिर्गीयते स्तूयत इत्युरुगायस्तस्य वृष्णेर्यादवस्य पदमभवति प्रकाशते इति।
अर्थात इन्द्र स्तुति करते हैं कि ‘हे भगवन् श्रीबलराम और श्रीकृष्ण ! आपके वे अति रमणीक स्थान हैं। उनमें हम जाने की इच्छा करते हैं, पर जा नहीं सकते (कारण, ‘अहो मधुपुरी धन्या वैकुण्ठाच्च गरीयसी। विना कृष्ण प्रसादेन क्षणमेकं न तिष्ठति’ ।। यानी यह मधुपुरी धन्य और वैकुण्ठ से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि वैकुण्ठ में तो मनुष्य अपने पुरुषार्थ से पहुँच सकता है, पर यहाँ श्रीकृष्ण की आज्ञा के बिना कोई एक क्षण भी नहीं ठहर सकता।) यदुकुल में अवतार लेने वाले, उरुगाय (यानी बहुत प्रकार से गाये जाने वाले) भगवान वृष्णि का गोलोक नामक वह परमपद (व्रज) निश्चित ही भूलोक में प्रकाशित हो रहा है’।
तब फिर बतलाइये व्रजभूमि की बराबरी कौन स्थान कर सकता है ? हिन्दुस्तान में अनेक तीर्थ स्थान हैं, सबका माहात्म्य है, भगवान के और-और भी जन्म स्थान है, पर यहाँ की बात ही कुछ निराली है। यहाँ के नगर-ग्राम, मठ-मन्दिर, वन-उपवन, लता-कुंज आदि की अनुपम शोभा भिन्न–भिन्न प्रकार से देखने को मिलती है। अपनी जन्मभूमि से सभी को प्रेम होता है, फिर वह चाहे खुला खंडहर हो और चाहे सुरम्य स्थान, वह जन्म स्थान है, यह विचार ही उसके प्रति प्रेम होने के लिये पर्याप्त है।
इसी से सब प्रकार से सुन्दर द्वारका में वास करते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण जब व्रज का स्मरण करते थे तब उनकी कुछ विचित्र ही दशा हो जाती थी।
जब व्रज भूमि के वियोग से स्वयं व्रज के अधीश्वर भगवान श्रीकृष्ण का यही हाल हो जाता है तब फिर उस पुण्यभूमि की रही-सही नैसर्गिक छटा के दर्शन के लिये- उस छटा के लिये जिसकी एक झांकी उस पुनीत युग का, उस जगद्गुरु का, उसकी लौकिक रूप में की गयी अलौकिक लीलाओं का अद्भुत प्रकर से स्मरण कराती, अनुभव का आनन्द देती और मलिन-मन-मन्दिर को सर्वथा स्वच्छ करने में सहायता प्रदान करती है – भावुक भक्त तरसा करते हैं, इसमें आश्चर्य ही क्या है ?
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