कृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
बहुतों के चित्त में यह शंका होती है कि द्विजों का गौरवर्ण होना ही प्राकृतिक है, फिर ऐसे प्रतिष्ठित कुल के विशुद्ध क्षत्रिय राम और कृष्ण कृष्ण वर्ण क्यों हैं ? कदाविच् कहा जाय कि ये विष्णु के अवतार हैं, विष्णु भगवान कृष्णवर्ण हैं, इसलिये ये भी कृष्णवर्ण हैं तो वहाँ भी प्रश्न होगा कि सत्त्वगुण के अधिष्ठाता भगवान विष्णु भी कृष्णवर्ण क्यों ? सत्त्व का रूप शास्त्र में श्वेत माना गया है, रज का लाल और तम का काला। तमोगुण का अधिष्ठाता कृष्णवर्ण हो सकता है, सत्त्व का अधिष्ठाता श्वेतवर्ण होना चाहिये। आइये, फिर पहिले इसी प्रश्न पर विचार करें। कृष्णवर्ण तीन प्रकार का है- अनुपाख्य-कृष्ण, अनिरुक्त-कृष्ण और निरुक्त-कृष्ण। सृष्टि के पहले की अवस्था को कृष्ण कहा जाता है। ‘आसीदिदं तमोभूतम्’ (मनु.) यह अनुपाख्य-कृष्ण है। जिसका हमें कुछ ज्ञान न हो सके, उसे कृष्ण और जो हमारी समझ में आ जाय, वह शुक्ल कहता है। निगूढ़ को कृष्ण और प्रकाशित को शुक्ल कहते हैं। यह औपचारिक प्रयोग है, काला परदा पड़ने पर कुछ नहीं दीखता- इसलिये न दीखने वाली वस्तु काली कही जाती है, प्रकाश यवेत मालूम होता है, इसलिये प्रकाशमान वस्तु को श्वेत कहते हैं। कार्य जब तक उत्पन्न न हो, तब तक अपने कारण में निगूढ़ रहता है, उसका ज्ञान हमें नहीं होता, इसलिये कार्य की अपेक्षा से कारणावस्था को कृष्ण और कार्योत्पत्ति दशा को शुक्ल कहते हैं। सब जगत जहाँ निगूढ़ है, जहाँ आज दीखने वाले जगत का कोई ज्ञान नहीं, उस सब जगत की कारणावस्था पूर्वावस्था को दृश्यमान जगत की अपेक्षा से कृष्ण ही कहना पड़ेगा, इसीलिये सब जगत के कारण भगवान विष्णु वा आद्याशक्ति वर्ण ही कहे जाते हैं। इस कृष्ण का हमें कभी अनुभव नहीं होता, यह केवल शास्त्रवेद्य है, इसलिये इसे अनुपाख्य-कृष्ण कहेंगे। दूसरा अनिरुक्त-कृष्ण वह है जिसका अनुभव तो हो, किन्तु इदमित्थम् रूप से एक केन्द्र में पकड़कर निर्वचन न किया जा सके। जैसे ऊपर आकाश में, अन्धकार में वा आँख मींच लेने पर काले रूप का अनुभव होता है, किन्तु वह सर्वरूप का अभाव कालेपन से भासित है, किसी केन्द्र में पकड़कर उस काले रूप को निरुक्त नहीं किया जा सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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