श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण भक्ति रस
(2)- सम्बन्धजन्य- श्रीकृष्ण हमारे पुत्र हैं, सखा हैं, भ्राता हैं, स्वामी हैं इत्यादि संबंध हेतु से जो श्यामसुन्दर में अनुराग होता है। जैसे व्रज के गोपा, नन्द, यशोदा, अर्जुन आदि। जिस समय श्रीकृष्ण कालीदह में कूद पडे़ और कालिय नाग उस सुकुमार दर्शनीय घनश्याम के सांवरे शरीर से लिपट गया, उस समय गोपगणों की और नन्द-यशोदा की बड़ी ही दयनीय दशा हो गयी। श्रीशुकदेवजी उनकी दशा का वर्णन करते हुए कहते हैं- तं नागभोगपरिवीतमृष्टचेष्ट गोपगणों को सबसे बढ़कर प्रिय श्रीकृष्ण ही थे। उन्होंने अपना शरीर, अपने सगे-संबंधी अपने सब प्रयोजन, स्त्री और अभिलाषाएं आदि सबको श्रीकृष्णर्पण कर दिया था। वे प्यारे श्रीकृष्ण को उसके शरीर में सर्प के लिपटे होने के कारण निश्चेष्ट देखकर अत्यंत कातर हो गये एवं दु:ख, पश्चाताप तथा भय से संज्ञाशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। माता यशोदा प्रिय पुत्र को इस दशा में देखकर अत्यंत कातर हो दीन स्वर से विलाप करती हुई पुत्र के पास जाने को स्वयं कुण्ड के अन्दर घुसने लगीं, किन्तु गोपियों ने, जिनको यशोदा को रोक लिया और श्रीकृष्ण की लीलाकथा कहती तथा आंसू बहाती हुई मृतक के समान श्रीकृष्ण की ही ओर निहारने लगीं। श्रीकृष्ण ही जिनके प्राण हैं, वे नन्द आदि सब गोप शोक से विह्वल हो जब कुण्ड में कूदने को तैयार हो गये, तब श्रीकृष्ण का प्रभाव जानने वाले बलभद्र जी ने उनको रोका। कोऊ कहो कुलटा कुलीन अकुलीन कहो, भक्ति के उपर्युकत भेदों के अतिरिक्त दो भेद और माने जाते हैं- ‘मदर्थ’ और ‘तदर्थ’ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 10। 16। 10, 21, 22
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