श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
इसी अवसर पर श्रीकृष्ण बलराम के दर्शनार्थ वहाँ महर्षि व्यास, नारद, च्यवन, देवल, असित, विश्वामित्र, शतानंद, भारद्वाज, गोतम, परशुराम, वशिष्ठ, गालव, भृगु, पुलस्त्य, कश्यप, अत्रि, मार्कण्डेय, बृहस्पति, द्वित, त्रित, एकत, ब्रह्मापुत्र सनकादि, अंगिरा अगस्त्य, याज्ञवल्क्य और वामदेवादि महर्षिगण पधारे। भगवान ने बड़ी ही नम्रता के साथ ॠषियों का स्वागत करके पाद्य, अर्ध्य, माला, चंदन, धूप, दीप आदि से उनका पूजन किया और कहा कि ‘आज हम लोगों का आपके दर्शन करने से जन्म सफल हो गया। सच्चे देव और तीर्थ तो आप महात्मा लोग ही हैं। श्रीकृष्ण के द्वारा धर्मयुक्त वाक्य सुनकर मुनिगण मोहित हो गये। उन्होंने समझ लिया, भगवान की यह नरलीला है। तदनन्तर सब महर्षियों ने भगवान की विनय के साथ स्तुति करते हुए अन्त में भक्ति का वरदान मांगा। वसुदेवजी ने ॠषियों से ज्ञानोपदेश के लिए प्रार्थना की, तब नारदजी ने कहा- ‘वसुदेव, तुम तो कृतार्थ हो चुके, तुम्हारी परमभक्ति को धन्य है, जिसके कारण साक्षात जगदीश्वर तुम्हारे यहाँ पुत्ररुप से प्रकट हुए हैं। माता देवकी ने मरे हुए गुरुपुत्र के लौटा लाने की बात सुनकर एक दिन रोकर श्रीकृष्ण बलराम से कहा, ‘हे कृष्ण बलराम, मैं जानती हूँ कि आप अपरिमित प्रभावशाली और योगेश्वरों के भी ईश्वर हैं। मैंने सुना है, तुमने मरे हुए गुरुपुत्र को यमराज के यहाँ से ला दिया, इससे मैं भी चाहती हूँ कि मेरे जिन छ: पुत्रों को कंस ने मार डाला था, उन्हें एक बार मुझे आंख से दिखा दो। माता की आज्ञा पाकर दोनों भाई चले। सुतल लोक में जाकर राजा बलि से मिले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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