श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
भगवान को उत्तर में जो शब्द कहे वे प्रत्येक मनुष्य को सदा अपने हृदय में धारण करके रखने चाहिये। आपने कहा- मया तेजकारि मघवन्मखभंगो अनुगृहणता। ‘देवराज ! तुम ऐश्वर्य के मद में मत वाले हो गये थे, इसी से मैंने तुम पर अनुग्रह करके (तुम्हारी आंखे खोलने क लिए) तुम्हारा यज्ञ रोक दिया, अब तुम मेरा स्मरण करो। जो मनुष्य ऐश्वर्य के मद से अंधा हो जाता है, वह मुझ दण्डपाणि को नहीं देख पाता, ऐसे लोगों में से मैं जिस पर कृपा करना चाहता हूं, उसकी सम्पत्ति हर लेता हूँ जिससे उसका मद उतर जाता है। इसके बाद उदार चित्त वाली सुरभी गौने गोपरुप भगवान को प्रणाम किया तथा स्तुति करने के अनन्तर अपने दुग्ध्ा से उनका अभिषेक किया। तदन्तर माता अदिति की आज्ञा से इन्द्र ने भी देवों के साथ ऐरावत द्वारा लाये हुए आकाश गंगा के पवित्र जल से भगवान का अभिषक किया और उनका ‘गोविन्द’ नाम रखा। इति गोगोकुलपति गोविन्दंमभिषिच्य स: । इस प्रकार गौ और गोकुल के स्वामी गोविन्द का अभिषेक करके उनकी अनुमति लेकर इन्द्र अपने देवताओं समेत स्वर्गलोक को लौट गये। श्रीनंदजी ने एकादशी का व्रत किया था, द्वादशी बहुत थोड़ी होने के कारण वे शीघ्र पारण करने के लिए, सूर्योदय से बहुत ही पहले आसुरी वेला में ही स्नानार्थ यमुनाजी में घुस गये। वरुण का एक जलचारी अनुचर वहाँ घूम रहा था, वह उन्हें पकड़कर वरुण के पास ले गया। सबेरा हो गया ‘नन्दजी जल से बाहर नहीं निकले, यह देखकर सब घबरा गये। चारों ओर ‘कृष्ण बचाओ’ ‘बलराम दौड़ो’ की पुकार मच गयी। श्रीकृष्णजी सारे भेद को जान सबको धीरज देकर वरुणलोक में चले गये। वहाँ पहुँचते ही लोकनायक वरुण ने बडे़ ही समारोह से उनका स्वागत, पूजन करते हुए कहा कि- अद्य मे निभृतो देहोअद्यैवार्थोअधिगत: प्रभो । हे प्रभो ! आज मेरा जीवन सफल हो गया, आज मुझे महान सम्पत्ति प्राप्त हो गयी। आपक चरण सेवक मोक्ष लाभ करते हैं, आज मैं भी मुक्त हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |