श्रीकृष्णांक
महाराष्ट्र में श्रीकृष्ण-भक्ति
‘अनंत ब्रह्मांडें उदरीं। हरि हा बालक नंदीघरीं’ जिसके उदर में अनंत ब्रह्माण्ड हैं वही हरि नंद के घर में बालक रुप से पधारे और वही भोली भाली बालमूर्ति पण्ढरी में विट्ठल रुप में विराजमान है, अन्य सन्तों की भाँति तुकाराम ने भी अनेक बार ऐसा ही कहा है। काला[1] के अभंग, गोपी-संबंधी गीत, वन भोजन, यमुना की बालुका में खेले जाने वाली कबड्डी आदि खेल का तुकाराम ने बड़ा ही सरस वर्णन किया है। काला की लीला यमुना तीर पर नित्य होती थी, उसके परमानंद का तुकाराम महाराज वर्णन करते हैं- गाई विसरल्या चार। पक्षी श्वापदांचे भार । ‘गौ, पशु, पक्षी चरना चुगना भूल गये। यमुना की गति रुक गयी। आनंदमय वन भोजन को देखकर देवताओं की भी लार टपकने लगी। वे मन ही मन गोप बालकों को धन्य धन्य कहने और अपने को धिक्कारने लगे’ ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ और तुकाराम के ग्रन्थों को देखने से पता चलता है कि ज्ञानेश्वर के अवतार एकनाथ थे और नामदेव के तुकाराम। ‘ज्ञानाचा एका व नामाचा तुका’ यह कहावत मराठी में प्रसिद्ध है। तुकाराम अपना देहू गांव छोड़कर पण्ढरपुर के सिवा अन्यत्र कहीं नहीं गये। दूसरे सन्त तो रमते राम थे। लेकिन तुकाराम के अभंग महाराष्ट्र में खूब घूमे हैं। वे अत्यंत सुलभ और लोकप्रिय हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोप बालकों का लाया हुआ भोजन इकट्ठा करके श्रीकृष्ण भगवान सभी गोप बालकों को खिलाते, अपनी जूंठन उन्हेंष देते, उनकी स्वइयं खाते। इस प्रकार के आनंदमय वनभोजन को ‘काला’ कहते हैं।
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