श्रीकृष्णांक
अवतार का हेतु
अवतार लेने का मुख्य प्रयोजन तो भक्तों को सुविधा और आनन्द प्रदान करना था, इस मुख्य कार्य के साथ ही प्रभु ने अनेक छोटे-छोटे गौण कार्य भी किये। उन्हीं में पापियों के देह का विनाश भी एक कार्य था। एक कार्य था। सो भी जगत की अचल नीति के इस सर्वमान्य सिद्धान्त को पुनः स्थापित करने के लिये ही कि ‘पापी इस दुनिया में कभी सफल नहीं होता, कभी विजयी नहीं होता और कभी उसका उद्धार नहीं होता, इसी प्रकार धर्मात्मा पुण्यवान जन अकारण ही मारा भी नहीं जाता। पाप करने वाले को अन्त में कोई भी देवी, देव, दानव, मानव, मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र एवं युक्ति- प्रयुक्ति नहीं बचा सकती। इसी प्रकार धर्मात्मा को जमीन पर, पहाड़ पर, जंगल में, आकाश में या जल में कहीं भी कोई नाश नहीं कर सकता। परित्राणाय साधुउनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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