श्रीकृष्णांक
योगेश्वर श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्णचन्द्र यदि स्वयं बद्ध होते तो दूसरों को मुक्त न कर सकते परन्तु जब हजारों योगी उनके चरण कमलों के प्रताप से मुक्त हो गये, तब श्रीकृष्णचन्द्र बद्ध नहीं हो सकते बन्धन हो कैसे ? क्योंकि भगवान गोपियों के पतियों में और सकल जीवों में व्यापक सर्वान्तरात्मा थे। उनका शरीर धारण करना केवल भक्तों पर दया करने के लिये ही था। पुरुष स्त्री से तभी बद्ध हो सकता है, जब वह अपने को भोक्ता और स्त्री को भोग्या समझे अर्थात स्त्री में या पुरुष में परस्पर काम भोग की इच्छा तभी तक रह सकती है। त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उतवा कुमारी । हे भगवन् ! तुम स्त्री हो, तुम पुरुष हो, तुम कुमार हो, तुम कुमारी हो और तुम्हीं वृद्ध होकर हाथ में दण्ड ले वजंना करते हो !इस प्रकार से परम पुरुष सर्वव्यापी अन्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही गोपी बनकर, स्वयं ही हजारों रूप धरकर भक्तों की यथाधिकार मनोवासना पूर्ण करते हुए, सबके काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद-मात्सर्य को अपने में लय करते हुए, सभी को परमानन्दमय मुक्ति-पद प्रदान करते थे। उनमें किसी का काम असर नहीं करता था और न उनमें काम ही हुआ करता था। दूसरों का कठिन काम भी उनमें आकर समुद्र में नदी के तुल्य लय हो जाता था। यही भगवान श्रीकृष्णचन्द्र का स्वरूप है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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