श्रीकृष्णांक
भागवत के बालकृष्ण
इस परमानन्द को मूढ़, विषयानन्दी तथा कुतर्की विद्यानन्दी नहीं समझ सकते, जो श्रद्धा चित्त नहीं, विश्वास अक्षयवट-छाया में जो विश्राम नहीं करते, प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवाद्वारा जो लोग श्रीगुरु चरण रज तथा दिव्य ज्ञान और भगवत्कृपा से प्रेमाभक्ति को प्राप्त न कर केवल वृथा बकवाद में ही अपना अमूल्य जीवन बरबाद करते है, ऐसे पामरजन भागवत और भगवल्लीलाओं का रसास्वादन नहीं कर सकते।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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