श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण-भक्त के लक्षण
9-जो भगवान के अतिरिक्त और किसी को नहीं जानता और न किसी को चाहता है, जिसका मन स्थिर है और जो संयमी है, वही भक्त नमस्कार-योग्य है। 10-जो भगवान को इसी शरीर से प्राप्त कर लेता है, जिसका भगवान के चिन्तन में ही समय व्यतीत होता है, वही भक्त नमस्कार-योग्य है। 11-जिसने भगवान को, जो कि एकमात्र सत्य वस्तु है, आत्म–समर्पण किया है, वही नमस्कार-योग्य है। 12-ऐसे भक्तराज के दर्शन, प्रणाम और सेवा करने वाले का जीवन धन्य है। ऐसे भक्त की कृपा से प्रेम की बृद्धि और कामना से रहितता होती है। भक्त का हृदय ही भगवान का विलास-स्थान है। भक्त के हृदय से भगवान का स्वरूप और भगवान की महिमा प्रकाशित होती है। हे पुरुषों ! ऐसे भक्त को त्यागकर और किसका संग करना चाहिये ? भक्त सम्पत्ति, सिद्धि अथवा कैवल्यमुक्ति नहीं चाहता; वह सर्वस्व त्याग देता है और सम्पूर्ण रूप से भगवान में विलीन होता है। अर्थात आत्म-विसर्जन करता है। भगवान में आत्मा की आहुति प्रदान करना सर्वश्रेष्ठ यज्ञ है, यही परम पुरुषार्थ है। जो जिस पदार्थ को चाहता है, वह उसको प्राप्त करता है। जो कुछ भी नहीं चाहता यह श्रीभगवान को प्राप्त करता है। भक्त का धन केवल श्रीकृष्ण के चरणकमल हैं और वह केवल भगवान की कृपा से ही प्राप्त होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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