श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
इस लिंग का आकार स्थूल भाव के अनुरूप है, परन्तु अस्थायी है, इसका कारण यही है कि यह स्थूल संबंध स्थायी नहीं है। साधना करते-करते अन्त में लिंग-देह का शोधन होने पर विशुद्ध लिंग का प्रतिभास होता है। विशुद्ध लिंग में अभिमान के समर्पित हो जाने पर स्थूल जगत का जन्म-मरण छूट जाता है। कारण, लिंग में स्थूल वासना न रहने से भौतिक आच्छादन नहीं होता। विशुद्ध लिंग का आकार अपूर्व ज्योतिर्मय, मनोनयनाभिराम, लावण्यमण्डित और दिव्यभावापन्न है। जितनी देवभूमियाँ हैं, वे सभी विशुद्ध लिंग की ही अवस्था हैं। परन्तु यहाँ से भी जीव को लौटना पड़ेगा। लिंग विशुद्ध होने पर फिर वह बाहर रहना नहीं चाहता। कारण, बाहर की ओर उसका आकर्षण नहीं रह जाता। वह जिस कारण भूमि से उतरा था, फिर अपने-आप ही वहीं लौट जाता है। लिंग का आकार अधिकाधिक पूर्णता लाभ करने पर कारण रूप में प्रकट होता है। कारण-देह का सौन्दर्य अवर्णनीय है। समस्त शास्त्रों में जो कामदेव या कन्दर्प की अनुपम रूपराशिका वर्णन मिलता है, वह इस कारणदेह के मूल उसके संबंध में ही है। इस संबंध में बहुत-सी बातें कहनी हैं। यहाँ इस विषय की चर्चा संगत नहीं होगी, परन्तु इतना जान रखना चाहिये कि कारण-देह भी जड़-देह है। इसके ऊपर जीव का स्वरूप है, जब कारण रूप का वर्णन नहीं हो सकता तब स्वरूप का वर्णन तो कौन करेगा? भगवान के अनुग्रह बिना इस स्वरूप की उपलब्धि का और कोई उपाय नहीं है। जि– तब यह समझना चाहिये कि कारण मण्डल को अतिक्रमण किये बिना, माया के अधिकार से छूटे बिना भगवद्देह या भगवत्-स्वरूप के दर्शन नहीं किये जा सकते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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