सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ
(222) सदा सब लोकों में वेद यह गाथा गाते हैं कि श्री हरि पतित-पावन, दीन-बन्धु और अनाथों के नाथ हैं। मेरे समान अनाथ, नीच, दीन कोई पतित नहीं है; मैं गुणों के सब अंगों (सभी गुणों) से रहित हूँ, अतः प्रभु! आप मेरा उद्धार क्यों नहीं करते? आप तो गज और गणिका का उद्धार करने वाले, अहल्या को उसके पति गौतम मुनि ने पत्थर हो जाने का जो शाप दिया था; उससे छुड़ाने वाले तथा भक्तों के संताप-नाशक एवं सकल पापहारी हैं। मन से, वाणी से, कर्म से यदि मैंने अपनी दशा कहने में कुछ रख लिया हो (कोई बात छिपा ली हो), सूरदास जी कहते हैं तो हे प्रभु! हृदय के भी तुम्हीं साक्षी हो (तुम हृदय की बात भी जानते ही हो)। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पृष्ठ संख्या |