सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
अरे मन! तू अत्यन्त निर्लज्ज और अनीति करने वाला है। जीवित दशा की तेरी (अन्याय की) चर्चा क्या की जाय, (तू तो) मरते समय भी विषयों से प्रेम करता है। कुबड़ा, बुरी तरह पंगु (पैरों से घसीट ते चलने वाला), काना तथा कान और पूँछ से रहित कुत्ता, जिसके गले में फूटी हँड़िया का मुख झूल रहा है, सिर में कीड़े पड़ गये हैं, वह भी कुतिया के वश होकर उसके पीछे लगा रहता है। पास की कसाई हाथ में शस्त्र लिये खड़ा है और शस्त्र की धार (वध करने के लिये) तेज कर रहा है, परन्तु बकरा मग्न होकर खेलता (उछल-कूद करता) और बार-बार (तृण) चरता है। (तेरी भी दशा ऐसे कुत्ते और बकरे की-सी है।) सब लोग यह आँखों से (प्रत्यक्ष) देख रहे हैं कि शरीर प्रत्येक क्षण क्षीण होता जा रहा है (फिर भी कोई सावधान नहीं होता)? सूरदास जी कहते हैं कि सती स्त्री स्वामी से विमुख होकर भोगों को कैसे भोग सकती है (सच्चा भक्त भगवान् से विमुख होकर संसार के भोगों में लग कैसे सकता है?)। |
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