श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
14. परिहास-प्रिय
कौन जाने यह सृष्टि इनका परिहास ही है या नहीं। इनकी महामाया- वे इनकी प्रकृति हैं, शक्ति हैं और ये परिहास-प्रिय- इनकी परिहास-प्रियता का ही दूसरा नाम माया है। इनके परिहास का वर्णन, उसकी संख्या कर पाना सम्भव नहीं है। केवल एक का उल्लेख- वह भी इसलिये श्रीमद्भागवत में इस परिहास का उल्लेख है। सभी श्रीकृष्ण-महिषियों को सदा यही लगता था कि ये श्रीद्वारिकाधीश उसी को सबसे अधिक मानते हैं। वह तो आपको भी लगेगा- इनके होकर देखिये। अनादिकाल से जो भी जीव इनका हुआ- उसे सदा यही लगा कि ये उसी के हैं। उसी को सर्वाधिक चाहते-मानते हैं। उसी के समीप सदा रहते हैं। अतः रानियों को यह लगता था- कोई नवीन बात तो थी नहीं। श्रीरुक्मिणी पट्टमहिषी थीं। सर्वज्येष्ठा और साक्षात रमा। उनको लगता था कि स्वामी की वे सर्वाधिक प्रेयसी हैं, यह स्वाभाविक था और वे ही कहाँ कम प्रेम करती थीं। वे सेवा में किंचित भी प्रमाद करें, यह संभव नहीं था। अब उनसे भी परिहास करने की सूझ गयी इन लीलामय को। श्रीद्वारिकानाथ भोजन करके विश्राम करने लेट गये थे। देवी रुक्मिणी ने उनका प्रसाद ग्रहण किया और सेवा करने उपस्थित हो गयीं। सखी के हाथ से रत्नदण्ड लघु व्यंजन उन्होंने स्वयं ले लिया और वायु करने लगीं। मन्द मन्द चरण-संचालन, नूपुरों का क्वणन, कंकण एवं चूड़ियों की मधुर झंकृति- वायु करने के साथ वे किंचित पद-चालन से संगीत का वातावरण बना रही थीं, जिससे स्वामी कुछ पल विश्राम कर सकें। सखियाँ दम्पत्ति के इस एकान्त में व्यवधान न डालने के विचार से कक्ष से चुपचाप जा चुकी थीं। रात्रि के द्वितीय प्रहर का प्रारम्भ- कक्ष में मन्द आलोक मणि-प्रदीपों का। शैय्या पर मोतियों की झालर लगी शुभ्र चाँदनी तनी। उस पर मल्लिका के पुष्पों की मालायें तनी थीं और उन पर भ्रमर गुंजार कर रहे थे। गवाक्ष से निर्मल चन्द्र की ज्योत्सना कक्ष में आ रही थी। उपवन से मन्द, शीतल, सुगन्धित वायु आ रही थी। कक्ष में से अगुरु की मधुर धूम गवाक्ष से निकल रही थी। शरत्पूर्णिमा का अत्यन्त मनोरम समय और यह भी रात्रि। रस-चर्चा नहीं, शान्त चयन भी नहीं, परिहास सूझा- लीलामय को कब क्या सूझेगा, कौन कह सकता है। वे तनिक अधलेटे हुए। 'यह कैसा सम्बोधन? ये इस प्रकार क्यों बोल रहे हैं?' देवी रुक्मिणी ने आश्चर्य से अपने आराध्य की ओर देखा। उनको चौंकाने के लिये यह सम्बोधन ही पर्याप्त था; |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज