श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
80. गोपी-तालाब
सूर्य-ग्रहण हो रहा था और इस वर्ष होने वाला सूर्य-ग्रहण भी वैशाख की अमावस्या को ही हो रहा था किन्तु साधारण ग्रहण था। वैसा ग्रहण नहीं जैसा कल्प क्षय के समय होता है अथवा उस समय हुआ था जिस सयम सब नरेश कुरुक्षेत्र के समन्तक पंचक क्षेत्र पहुँचे थे। सूर्य-ग्रहण सृष्टि के लिए कोई असाधारण घटना नहीं है। प्रतिवर्ष न सही किन्तु व्यक्ति के जीवन में तो कई बार सूर्य-ग्रहण पड़ता ही है। कलि में सूर्य, चन्द्र-ग्रहण भारतवर्ष अधिक होते हैं। दूसरे युगों में कम होते हैं। श्रीकृष्णचन्द्र के अवतार काल में होने वाला यह दूसरा ग्रहण था। उनको धरा पर अवतीर्ण हुए लगभग एक सौ ग्यारह वर्ष हो चुके थ। व्रज को छोड़े पूरे सौ वर्ष बीत गये थे। सूर्य-ग्रहण के स्नान का मुख्य स्थान तो कुरुक्षेत्र का सामन्तक पंचक ही है किन्तु देश के सब धार्मिक जन तो वहाँ प्रत्येक ग्रहण के समय नहीं पहुँच सकते। जब यात्रा पैदल या पशु-वाहनों द्वारा करनी थी तब और भी कठिन था वहाँ पहुँचना। व्रज के लोगों की कोई अभिरुचि किसी विशेष तीर्थ में नहीं थी। वे श्रीकृष्णगतैक प्राण पावन जन उनको तीर्थ से, पुण्य से अथवा पुण्यों के फल से प्रयोजन नहीं था और न उन्होंने कभी परलोक की चिंता की। उनकी चिंता का विषय की एक मात्र यह था- 'उनके श्याम-बलराम प्रसन्न रहें।' व्रज में व्रत, स्नान, दानादि धर्म सब होते थे और दूसरे सब स्थानों से अधिक होते थे किन्तु वहाँ प्रत्येक की एक ही कामना थी- 'उनका यह सब पुण्य फल प्राप्त करके श्रीकृष्ण सुखी रहें।' श्रीव्रजराज ने बहुत पहिले ही पता लगाया कि ग्रहण स्नान करने श्रीद्वारिकाधीश कहाँ पधारेंगे। जब पता लगा कि द्वारिका समाज इस बार दूर यात्रा करने का विचार नहीं रखता, सब लोग कश्यपाश्रम सिद्धपुर में बिन्दु सरोवर में ग्रहण-स्नान करना चाहते है तो व्रज के लोगों की भला कुरुक्षेत्र से क्या लेना था? वैसे भी महाभारत का युद्ध समाप्त हुए अभी बहुत वर्ष नहीं व्यतीत हुए थे। वहाँ सर्वत्र अस्थि-कङ्काल और भग्न अस्त्र-शस्त्र योजनों दूर तक फैले थे। वह क्षेत्र अभी भी यात्रा के योग्य नहीं था। अतः तीर्थ-यात्रियों ने इस बार के सूर्य-ग्रहण स्नान के लिए अपनी-अपनी सुविधा के क्षेत्र चुने थे। व्रज के लोगों को तो यात्रा ही इसलिए करनी थी कि इस प्रकार वे बलराम-श्रीकृष्ण से मिलने का अवसर पा सकते थे। अतः व्रजवासियों के छकड़े भी सिद्धाश्रम की यात्रा करने चले। कुरुक्षेत्र में योजनों विस्तीर्ण स्थान है; किन्तु सिद्धाश्रम में इतना स्थान नहीं है। वहाँ विन्दुसर तो छोटा ही है। अवश्य ही सरस्वती में कुछ दूरी तक स्नान किया जा सकता है परन्तु सरस्वती में वहाँ जल सदा ही प्रायः थोड़ा रहता है। सिद्धाश्रम में गोपों का समाज प्रायः ग्रहण के कुछ पूर्व पहुँचा। वे लोग ग्रहणस्पर्श स्नान करके सरस्वती में बिन्दुसर आ गये और पुरुषों ने ग्रहण का मध्य स्नान कर लिया। अब गोप बिन्दुसर के चारों ओर सशस्त्र खड़े हो गये जिससे नारियाँ सरोवर में स्नान कर सकें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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