श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
18. तप-पुत्र प्राप्ति
सहस्रार शत्रुनाशक चक्र को भी यहाँ पुष्प लाने की सेवा मिल गयी थी। देवार्चन के लिये जो पुष्प होते हैं, उन्हें सुकुमार, सुरंग और सुगन्धित होना चाहिये, किन्तु वहाँ हिम क्षेत्र में तो ब्रह्मकाल भी नहीं था। उपयुक्त सुमन सूदूर से ही लाने पड़ते थे। कुश अत्यन्त दुर्लभ है कैलाश ही तो क्या पूरे हिमालय के हिमक्षेत्र में। आर्य उपासना, यज्ञादि कुश के बिना हो नहीं सकते। अतः नन्दक खङ्ग को प्रतिदिन नवीन कुश भारत की समतल भूमि से खोदकर ले आना था। सर्वलोकेश्वरेश्वर, निखिल कामप्रद श्रीद्वारिकाधीश को इस तप की आवश्यकता कहाँ थी, किन्तु उन्हें विश्व को एक आदर्श देना था- केवल काम से प्राप्त संतान के सद्गुणी होने का कोई आश्वासन नहीं। कुल को यशोज्ज्वल करने वाले पुत्र को पाना हो तो उसके निमित्त तपस्या आराधना की जानी चाहिये। जब सन्तति काम-भोग का परिणाम होगी- उसके मूल में ही जो बीज है, उससे वह ऊपर कैसे उठ पावेगी? उसके मूल में भगवदाराधना का बीज होगा तब वह स्वयं अपना और पितरों का भी उद्धार करने में सक्षम होगी। भगवान शशांकशेखर को श्रीकृष्ण के तप की आवश्यकता थी? वे कहाँ इन जनार्दन से पृथक हैं। ये इच्छा करते तो गंगाधर द्वारिका में प्रकट हो जाते, किन्तु ये लीलामय- इनकी लीला में बाधक भी नहीं बना जा सकता। जब तक तप करने की रुचि थी- तपस्या चलती रही। जब उसकी पूर्णाहुति की इच्छा हुई, अराध्य तो उत्सुक थे कि वे प्रकट हो जायँ। उन्हें प्रकट होने में विलम्ब कहाँ था। वे प्रकट हो गये। हिमश्वेत पर्वतोत्तुंग वृषभ कैलास के शिखर पर प्रकट हुआ। उसकी अंग ज्योत्स्ना से दिशायें उज्ज्वल हो गयीं। उसके गले घण्टारव से उठता गंभीर प्रणव नाद गूँजा और वह अपने आराध्य को लिये शिखर से नीचे उतरा। मानसरोवर की ओर बढ़ा[1]।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मानसरोवर समुद्र तल से 16,000 फीट की ऊँचाई पर है तिब्बत में। वहाँ से कैलास 18 मील दूर है। कैलास शिखर 22,000 फीट ऊँचा है। समतल स्थल उस 16,000 फीट ऊँचाई से भी 2000 फीट ऊपर से पर्वत का पादप्रान्त प्रारम्भ होता है।
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज