प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासमैया, मोहि दाऊ बहुत खिझायौ। बालकृष् को न्यायाधीश ने गोद में बिठा लिया, और मुँह चूम कर यह फैसला सुना दिया- सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत, ही कौ धूत। यशोदा यह बात किसी और की शपथ खाकर कहतीं, तो कृष्ण को शायद ही उनके कथन पर विश्वास आता। पर यह कसम गोधन की है। ग्वालिनी के लिए इस शपथ से बड़ी और कौन शपथ हो सकती है? इन पंक्तियों में कवि ने कैसा स्वाभाविक वात्सल्य स्नेह भर दिया है! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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