प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 190

प्रेम योग -वियोगी हरि

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कुछ आदर्श प्रेमी

पक्षी है तो क्य हुआ? हम तो उसे जिसे बिरहिणी नायिकाओं के बकीलों ने ‘पापी’ का खिताब दे रक्खा है, एक ऊँचा प्रेमप्रण निबाहने वाला प्राणी मानते हैं। प्रेम की सारी निधि क्या अकेले मनुष्य के ही हिस्से में आ गयी है? चातक की चोटीली चाह का मर्म जिसने समझ लिया उसे प्रेम का तत्व प्राप्त हो गया, ऐसी हमारी दृढ़ धारणा है। कैसी अनुपमेय प्रेमानन्यता है उस पवित्र पक्षी की। प्रेमी पपीहा प्रेम पर जीना ही जानता है, और मरना भी जानता है। प्रेम के रणांग पर हमें तो एक वही सच्चा प्रण वीर देखने में आया है; मरते मर जायेगा, पर अंत तक अपना प्रण भंग न करेगा। क्या ही ऊँचा प्रेम प्रण है!

पपिहा पनकों ना तजै, तजै तो तन बेकाज।
तन छूटै तो कछु नहीं, पन छूटै अति लाज।। - कबीर

प्रेम की प्यास में कितनी तड़प है, इसे वह पपीहा ही जानता है। कूप, नदी, तालाब, कुंड आदि जलाशय उसके किस काम के? समुद्र तक तो उसकी प्यास बुझा नहीं सकता। वह तो केवल स्वाति जल का ही प्यासा है। उसकी करुणा भरी पीउ, पीउ की पुकार प्रिय पयोद तक जाय या न जाय, पर वह किसी भांति प्रेम प्रण में पिछड़ने वाला प्राणी नहीं। पियेगा तो स्वाति का ही जल पियेगा, नहीं तो प्यासा ही प्राण त्याग देगा। वाह रे, प्रणवीर!

सुन रे तुलसीदास, प्यास पपीहहि प्रेम की।
परिहरि चारिहु मास जो अँचवै जल स्वातिकौ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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