प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 243

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य

वात्सल्य रस में शान्त, दास्य और सख्य रसों का भी मधुर आस्वादन प्रेमी को मिलता है। शान्त का गुणगौरव, दास्य का सेवा भाव और सख्य का असंकोच वात्सल्य स्नेह में मिला रहता है। इसी से यह महारस अमृत से भी अधिक मधुर माना गया है। अवधराज दशरथ के वे सरयूती पर चौगान खेलने वाले चारों सुंदर सुकुमार कुमार आज भी हमारे हृदय पटल पर अंकित हो रहे हैं। कृष्ण बलराम की वह कालिन्दी कछारों पर ग्वाल बालों के साथ खेलने वाली विश्व विमोहिनी जोड़ी आज भी हमारी आँखों में समायी हुई है। परित्यक्ता शकुन्तला का वह आश्रम में सिंह शावक के साथ खेलता हुआ शिशु भरत आज भी हमें स्नेह अधीर कर देता है।

धन्य है वह गोद, जो बालकों के धूलि धूसरित अंगों से मैली हुआ करती है। धन्य हैं वे श्रवण, जिनमें बालकों की तोतली बोली की सुधा धारा बहा करती है! धन्य हैं वे नेत्र, जिनमें बच्चों की भोली भाली बाल छबि बसा करती है!

हाँसी बिन हेतु माहिं दीसति बतीसी कछू,
निकसी मनों है पाँति ओछी कलिकान की।
बोलन चहत बात निकसि जाति टूटी सी,
लागति अनूठी मीठी बानी तुतलान की।।
गोदतें न प्यारी और भावै मन कोई ठौर,
दौरि दोरि बैठे छाहि भूमि अँगनानकी।
धन्य धन्य वे हैं नर मैले जे करत गात,
कनिया लगाय धूरि ऐसे सुवनानकी।। - लक्ष्मण सिंह

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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