प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 253

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

इसमें संदेह ही क्या कि ‘तत्व तत्व सूर कही? गजब की थी उस अंधे की सूझ। श्रृंगार और वात्सल्य रस की जो विमल धाराएं प्रेमावतार सूर ने बहायीं, उनमें आज भी विश्व भारती निमज्जन कर अपने सुख सौभाग्य को सराहती है। वात्सल्य वर्णन तो इनका इतना प्रगल्भ और काव्यांग पूर्ण है कि अन्यान्य कवियों की सरस सूक्तियाँ सूर की जूठी जान पड़ती हैं। सूर जैसा वात्सल्य स्नेह का भावुक चित्रकार न भूतो न भविष्यति’- न हुआ है, न होगा। सूर ने यदि वात्सल्य को अपनाया तो वात्सल्य ने भी सूर को अपना एकमात्र आश्रय स्थान मान लिया। सूर का दूसरा नाम वात्सल्य है और वात्सल्य का दूसरा नाम सूर। सूर और वात्सल्य में अन्योन्याश्रय संबंध है।

अच्छा, आओ, अब उस बालगोपाल की सूर वर्णित दो चार बाल लीलाएँ देखें। बलराम और कृष्ण माता यशोदा के आगे खेल रहे हैं। सहसा कृष्ण की दृष्टि बलदाऊ की चोटी पर गयी हैं! दाऊ की इतनी लम्बी चोटी और मेरी इतनी छोटी! दूध पीते पीते, अरी, कितने दिन हो गये, फिर भी यह उतनी ही छोटी है! मैया, तू तो कहा करती थी कि दाऊ की चोटी की तरह, कन्हैया! तेरी भी लम्बी और मोटी चोटी हो जायेगी। पर वह कहाँ हुई, मेरी मैया! तू मुझे कच्चा दूध देती है, सो भी खिझा-खिझाकर। तू माखन रोटी तो देती ही नहीं। अब तू ही बता, चोटी कैसे बढ़े? बाल स्पर्धाका कैसा सुंदर भाव है!

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लाँबी मोटी।
काढ़त, गुहत, न्हवावत, ओछत, नागिनि सी मुइँ लोटी।।
काचो दूध पिथावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूर स्याम, चिर जीवौ दोऊ मैया, हरि हलधर की जोटी।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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